सुप्रीम कोर्ट और CJI को RTI एक्ट में लाने का मामला है क्या

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दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने अपने एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) और उसके चीफ जस्टिस (chief justice) के दफ्तर को सूचना के अधिकार के कानून (Right to Information Act) के दायरे में माना था... | knowledge News in Hindi - हिंदी न्यूज़, समाचार, लेटेस्ट-ब्रेकिंग न्यूज़ इन हिंदी

सुप्रीम कोर्ट और उसके मुख्य न्यायाधीश का दफ्तर आरटीआई एक्ट के दायरे में आएगा. आज सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि चीफ जस्टिस का दफ्तर एक पब्लिक अथॉरिटी है.न्यायिक व्यवस्था में पारदर्शिता लाने के सवाल पर आज सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला दिया. हालांकि निजता और गोपनीयता का हवाला देकर इसमें कुछ शर्तें जोड़ी गई हैं.

ये पूरा मामला एक दशक पुराना है. एक आरटीआई एक्टिविस्ट सुभाष चंद्र अग्रवाल ने 2007 में आरटीआई डालकर जजों की संपत्ति का ब्यौरा मांगा था. जब सुभाष चंद्र अग्रवाल को आरटीआई से जानकारी नहीं मिली तो उन्होंने सेंट्रल इंफॉर्मेशन कमीशन का रुख किया. सेंट्रल इंफॉर्मेशन कमीशन ने कहा कि आरटीआई में मांगी गई जजों की संपत्ति की जानकारी सुभाष अग्रवाल को दी जानी चाहिए.

2010 में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल और सेंट्रल पब्लिक इंफॉर्मेशन ऑफिसर ने सुप्रीम का रुख किया. फैसले को सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी गई. इस साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट में इसपर सुनवाई हुई और अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया था.न्यायिक व्यवस्था में पारदर्शिता लाने के लिए अगर जजों को आरटीआई एक्ट के दायरे में लाया जा रहा है तो इसमें गलत क्या है? इसका विरोध क्यों हो रहा है? दरअसल विरोध के पीछे कई वजहें गिनाई जा रही हैं.

 

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