नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आदिवासियों और वनवासियों को भारी राहत देते हुए उन्हें फिलहाल बेदखल नहीं करने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने 13 फरवरी के आदेश पर फिलहाल रोक लगा दिया है. इसी के साथ केंद्र और राज्य सरकार को फटकार भी लगाते हुए कहा है कि अब तक क्यों सोते रहे. इस मामले की अगली सुनवाई 10 जुलाई होगी. यह फैसला सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार की ओर से आदिवासियों को जंगलों से हटाने के आदेश पर रोक लगाने के मामले में सुनवाई के दौरान दिया.
ये कानून 31 दिसंबर 2005 से पहले कम से कम तीन पीढ़ियों तक वन भूमि पर रहने वालों को भूमि अधिकार देने का प्रावधान करता है. दावों की जांच जिला कलेक्टर की अध्यक्षता वाली समिति और वन विभाग के अधिकारियों के सदस्यों द्वारा की जाती है. इनकी मध्य प्रदेश, कर्नाटक और ओडिशा में सबसे बड़ी संख्या है- जिसमें अनुसूचित जनजातियों और अन्य वनों के निवासियों अधिनियम, 2006 के तहत भारत भर के वनों में रहने वालों द्वारा प्रस्तुत भूमि स्वामित्व के कुल दावों का 20% शामिल है. संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार द्वारा भारतीय वन अधिनियम, 1927 के तहत वनवासियों के साथ किए गए ऐतिहासिक अन्याय को रद्द करने के लिए कानून बनाया गया था, जो पीढियों से रह रहे लोगों को भूमि पर"अतिक्रमण" करार देता था.
शीर्ष अदालत ने विशेष रूप से 17 राज्यों के मुख्य सचिवों को निर्देश जारी किए हैं कि उन सभी मामलों में जहां भूमि स्वामित्व के दावे खारिज कर दिए गए हैं उन्हें12 जुलाई, 2019 तक बेदखल किया जाए. ऐसे मामलों में जहां सत्यापन/ पुन: सत्यापन/ पुनर्विचार लंबित है, राज्य को चार महीने के भीतर प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए और एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिए.
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में अनुमानित 104 मिलियन आदिवासी हैं. लेकिन सिविल सोसाइटी समूहों का अनुमान है कि वन क्षेत्रों में 1,70,000 गांवों में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों और अन्य वनवासियों मिलाकर लगभग 200 मिलियन लोग हैं, जो भारत के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 22% हिस्सा कवर करते हैं.
धन्यवाद सुप्रीम कोर्ट..... अच्छा निर्णय
cmojhr
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