नई दिल्ली: साल 1986 में राजीव गांधी की सरकार द्वारा लिए गए एक फैसले को लेकर पिछले लगभग 38 साल से बीजेपी कांग्रेस पार्टी पर निशाना साधती रही है. हाल ही में एनडीटीवी के साथ एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में भी पीएम मोदी ने राजीव गांधी पर निशाना साधते हुए कहा था कि शाहबानो का सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट उखाड़कर फेंक दिया गया और संविधान को बदल दिया गया. क्योंकि वोटबैंक की राजनीति करनी थी. आइए जानते हैं क्या था शाहबानो का मामला. शाहबानो मामले को लेकर कांग्रेस पार्टी पर लगातार हमले होते रहे हैं.
शाहबानो ने बच्चों के लिए हर महीने गुजारा भत्ता देने की मांग की. लेकिन उसके पति ने मोहम्मद अहमद खान ने शाह बानो को तीन तलाक दे दिया. जिसके बाद उसने किसी भी तरह की मदद करने से इनकार कर दिया. संविधान पीठ ने दिया था ऐतिहासिक फैसला शाहबानो ने अदालत से न्याय की मांग की . हालांकि उसके पति मोहम्मद अहमद खान ने दलील दी कि तीन तलाक के बाद इद्दत की मुद्दत तक ही तलाकशुदा महिला की देखरेख की जिम्मेदारी उसके पति की होती है. तलाक के बाद गुजारा भत्ता देने का कोई प्रावधान नहीं है. मामला मुस्लिम पर्सनल लॉ से जुड़ा था. लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची. पांच जजो की संविधान पीठ ने 23 अप्रैल 1985 को मुस्लिम पर्सनल लॉ बॉर्ड के आदेश के खिलाफ जाते हुए शाहबानो के पति को आदेश दिया कि वो अपने बच्चों को गुजारा भत्ता दे.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत हर महीने मोहम्मद अहमद खान को 179.20 रुपये देने थे. इस आदेश में संविधान पीठ ने सरकार से 'समान नागरिक संहिता' की दिशा में आगे बढ़ने की अपील की थी. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के दवाब के आगे झुक गए राजीव गांधी 'समान नागरिक संहिता' वाले टिप्पणी और इस फैसले को लेकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बॉर्ड ने जमकर नाराजगी जतायी थी. मुस्लिम कट्टरपंथियों के विरोध के आगे राजीव गांधी सरकार ने घुटने टेक दिए थे. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था. राजीव गांधी की सरकार ने मुस्लिम महिला कानून 1986 सदन में पेश किया. शाहबानो मामले में राजीव गांधी की सरकार के द्वारा उठाए गए कदम को लेकर देश भर में सरकार के खिलाफ एक माहौल देखने को मिला.
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