व्यक्तिगत स्तर पर तमाम चुनौतियों के बावजूद फ़ुटबॉलर रंगनाथन के लिए हॉस्टल लाइफ़ एक वरदान थी. वो बिना किसी रोकटोक के खेल सकती थीं. वो कहती हैं कि उनकी माँ ने उन्हें अपना पैशन फॉलो करने से नहीं रोका.
अपने फोकस और कोचों के मार्गदर्शन के साथ, रंगनाथन ने फ़ुटबॉल के मैदान में दर्शकों का ध्यान खींचना शुरू किया. खेल में तेज़ी से कदम बढ़ाती रंगनाथन ने नेपाल के काठमांडू में एसएएफ़एफ़ महिला चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व किया. उन्होंने न सिर्फ़ भारतीय टीम ने ख़िताब जीता, बल्कि वो भारत के लिए सबसे ज़्यादा गोल करने वाले खिलाड़ियों में से एक रहीं.
भारत को अपनी इन बेटियों पर गर्व होना चाहिए जिन्होनें विपरीत परिस्थितियों को दरकिनार करके राष्ट्र का गौरव बढ़ाया और अन्य बच्चियों को भी प्रेरित एवं प्रोत्साहित करा!