10वीं बोर्ड परीक्षा देने वाली थी, एक दिन आंखों की रोशनी चली गई। और फिर हमेशा के लिए मैं अंधी हो गई। एक स्कूल जाने वाली लड़की पर क्या बीती होगी, इसका अंदाजा थोड़ा बहुत ही आप लोग लगा सकते हैं। मैंने क्या फील किया, अंदर किस तरह की छटपटाहट हुई, इसे यादकर कमेरा नाम आंचल भटेजा है। बठिंडा से हूं। मेरी एक बड़ी बहन है, जो मुझसे 13 साल बड़ी हैं, वह 1987 में पैदा हुई हैं। मेरा जन्म 2000 में हुआ। मेरे जन्म से पहले ही मम्मी की तबीयत खराब रहने लगी। फिर मैं गर्भ में आ गई और उनकी बीमारी की वजह से सात महीने में ही...
मुझे शंकर नेत्रालय, चेन्नई ले जाया गया। वहां पता चला कि मुझे हाइपोक्सिया है, जिसमें ब्रेन तक ऑक्सीजन नहीं पहुंचता है। हालांकि मेरी आंखें ठीक हैं, बस कुछ प्रतिशत रोशनी कम है। डॉक्टर ने चश्मा लगाने की सलाह दी। डॉक्टर ने यह भी कहा कि जब मैं मां के पेट में थी, उन्होंने कुछ ऐसी दवाएं खा ली थीं, जिसकी वजह से मैं प्रीमैच्योर पैदा हुई और मेरी रोशनी कमजोर हो गई।
मैंने खुद को इंगेज करने की पूरी कोशिश की, इसके बावजूद मां की यादें मुझे परेशान करती थी। ध्यान भटकाने के लिए मैं चार-चार कोचिंग ले रही थी। रिश्तेदारों की बातें मुझे ठेस पहुंचा रही थी। कोई कहता- पापा के बुरे कर्माें की वजह से तुम्हारी मां मर गई, तो कोई पापा की दूसरी शादी की बात मुझसे करता। किसी को इस बात की चिंता नहीं थी कि इन सब बातों का 13-14 साल की बच्ची पर क्या असर पड़ेगा। मैंने स्टेप मदर की कहानियां सुन रखी थी। तब तक पापा से भी उस किस्म का जज्बाती जुड़ाव भी नहीं था। डर लगने लगा कि नई मां...
स्कूल और दोस्तों का व्यवहार मेरे प्रति थोड़ा बदल गया। मुझे इस बात का बुरा लगा कि जिस स्कूल में मैं बचपन से पढ़ी हूं, बड़ी हुई हूं, वहां सब बदल गए। मेरे दोस्तों का रवैया भी बदल गया था। वह टाइम ही कुछ ऐसा था जब कुछ भी सही नहीं हो पा रहा था। पापा आज बताते हैं कि अगर मैं न होती तो वह कोई गलत कदम उठा लेते। सच कहूं तो मैं यह मानने को तैयार ही नहीं थी कि अब मुझे कुछ भी नहीं दिख रहा है। ऊपर ही ऊपर से मैं स्ट्रॉन्ग होने का दिखावा कर रही थी। मैं किसी के सामने कमजोर साउंड नहीं करना चाहती थी। उस पर से मैं एक ब्लाइंड लड़की थी। आपको नहीं पता लोग मेरे जैसी लड़कियों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। आज मैं यह बात समझ पाती हूं क्योंकि मेरे साथ भी वही सब होता है। दिल्ली की सड़कों पर तो रैंडम लोग सीधे हाथ पकड़ लेते हैं और कहते हैं, आइए मैडम आपको सड़क पार करा दें। कई बार बहुत गंदी फीलिंग आती है लेकिन मैं कुछ कह नहीं...
कॉलेज में लॉटरी से हॉस्टल एलॉट होता था। मुझे जिस लड़की के साथ कमरा मिला था, मैं उस पर पूरी तरह से डिपेंड हो गई। वह ही मुझे कॉलेज ले जाती थी, बाहर जाती थी, सीढ़ियों से यहां तक की नीचे उतरना होता था तो भी मैं उसको साथ ले जाती थी। मुझे लगा कि दोस्त तो ऐसे ही होते हैं लेकिन तीन महीने बाद वह भी इरिटेट हो गई। एक दिन उसने कह ही दिया कि मैं तुम्हारा बोझ नहीं उठा सकती हूं। तुम अपना देख लो।
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