संजय कुमार का कॉलम: भारत ‘एक देश, एक चुनाव’ के लिए उपयुक्त है? हमारे पार्टी सिस्टम पर इसके असर के बारे में सोचना जरूरी

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Ads से है परेशान? बिना Ads खबरों के लिए इनस्टॉल करें दैनिक भास्कर ऐपभारत ‘एक देश, एक चुनाव’ के लिए उपयुक्त है? हमारे पार्टी सिस्टम पर इसके असर के बारे में सोचना जरूरीसंजय कुमार, सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज में प्रोफेसर और राजनीतिक टिप्पणीकार

पक्ष में दिए गए तर्कों में खर्च का कम होना और सरकार द्वारा विकास कार्यों में तेजी लाना शामिल था। इस दो तर्कों पर शायद ही कोई असहमति हो, लेकिन क्या एकसाथ चुनाव के लिए ये दो फायदे ही काफी हैं? या भारत में पार्टी सिस्टम पर इसके असर के बारे में भी सावधानीपूर्वक सोचना जरूरी है? अभी हर राज्य का अपना चुनाव चक्र है, ऐसे में उस राज्य सरकार का क्या होगा, जिसे कुछ ही वर्ष पहले चुनाव के माध्यम से चुना गया है? क्या संविधान संशोधन के बाद किसी राज्य को राज्यपाल शासन में लंबे समय तक रखने का प्रावधान बनाना लोकतांत्रिक सिद्धांत के खिलाफ नहीं होगा?

एकसाथ चुनाव होने पर छोटी क्षेत्रीय पार्टियां इसलिए गायब हो जाएंगी, क्योंकि मतदाताओं की पसंद इससे प्रभावित होगी कि पार्टियां राष्ट्रीय राजनीति में कैसी भूमिका निभा रही हैं। एकसाथ चुनाव का मतलब होगा राष्ट्रीय दलों के प्रभुत्व का विस्तार और क्षेत्रीय पार्टियों की राजनीतिक जगह धीरे-धीरे कम होना।

 

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