शेखर गुप्ता का कॉलम: विचारधारा की मजबूरियां अपनी जगह हैं, मगर हमारे नेता जानते हैं कि उनके मतदाता बच्चों की...

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शेखर गुप्ता का कॉलम: विचारधारा की मजबूरियां अपनी जगह हैं, मगर हमारे नेता जानते हैं कि उनके मतदाता बच्चों की पढ़ाई के लिए बस तीन चीज़ें चाहते हैं- अंग्रेजी, अंग्रेजी, अंग्रेजी Opinion NewEducationPolicy ShekharGupta HRDMinistry DrRPNishank PMOIndia

विचारधारा की मजबूरियां अपनी जगह हैं, मगर हमारे नेता जानते हैं कि उनके मतदाता बच्चों की पढ़ाई के लिए बस तीन चीज़ें चाहते हैं- अंग्रेजी, अंग्रेजी, अंग्रेजीमोदी सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति के एक पहलू ने कुछ घबराहट और बहस को जन्म दिया है। यह पहलू है, कम से कम पांचवीं कक्षा तक बच्चों को उनकी मातृभाषा, क्षेत्रीय भाषा या घरेलू भाषा में पढ़ाया जाए। आलोचकों का कहना है कि यह आरएसएस के एजेंडे का हिंदी करण है। समर्थक कह रहे हैं कि बच्चे अपनी भाषा में ज्यादा अच्छे से समझ पाते...

अगर मोदी सरकार का ज़ोर हिंदी या देसी भाषाओं को पढ़ाई का माध्यम बनाने पर है, तो संभावना यही है कि अधिकांश राज्य सरकारें भी उसी के इशारे पर चलेंगी। सरकारें मान्यताप्राप्त प्राइवेट स्कूलों के लिए भी ऐसा आदेश जारी कर सकती हैं। कोई भी, चाहे वह सबसे मजबूत सरकार ही क्यों न हो, बाज़ार की ताकत से नहीं भिड़ सकता। दीवारों पर लिखी इबारत पढ़ने का मतलब है यह समझने की कोशिश करना कि लोग क्या चाहते हैं। जो दीवारों पर लिखी इबारत को सही पढ़कर जनता की आकांक्षाओं से जुड़ता है वह जीतता है। लोगों की बढ़ती आकांक्षाओं का पहला संदेश हमने दीवारों पर ही पढ़ा, खासकर बिहार में 2005 में हुए दो चुनावों के दौरान।

लोगों की आकांक्षाओं की बाढ़ उफन रही थी और उन्हें शिक्षा की लहरों का सहारा चाहिए था। आप सवाल कर सकते हैं कि इसका शिक्षा की भाषा से क्या संबंध है? इस सवाल पर मुझे ‘दीवारों पर लिखी इबारत’ की दूसरी सीख याद आती है, जो 2011 में पश्चिम बंगाल के चुनाव के दौरान की है।

 

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ShekharGupta HRDMinistry DrRPNishank PMOIndia Agar china/japan technology ki jagh angrezi angrezi bus angrezi par dhyan dete to aaj itne developed na hote. soch badaliye...ya desh badliye.

ShekharGupta HRDMinistry DrRPNishank PMOIndia आज के बच्चे समझदार है,उनको मालूम है क्या करना है, आप जैसे कि नशीहत की जरुरत नही है,

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