'चूंकि संख्या में वे इतने ज़्यादा हैं और इतने अलग-अलग तरह के हैं कि हिंदुस्तान के लोग स्वभाविक तौर पर बँटे हुए हैं.'
दिल्ली से मुरादाबाद होकर लखनऊ और फिर रायबरेली, फ़तेहपुर, कानपुर, आगरा होते हुए दिल्ली लौटने की अपनी 24 घंटे की क़रीब डेढ़ हज़ार किलोमीटर की यात्रा में मैंने लाख से ज़्यादा लोगों को सड़क पर देखा. ये उन्हीं लाचार, लॉकडाउन के शिकार लोगों की तकलीफ़ों की रत्तीभर ही आंखों देखी है.दिल्ली के दिलशाद गार्डन से आनंद विहार पहुंचने तक पूरे रास्ते में लोगों की भीड़ चले जा रही है.
अब क़रीब तीन घंटे हो चुके हैं, मेरी आंखें लगातार सड़क के बाएं लोगों की भीड़ चलते हुए देख चुकी हैं. राइट रहने वाले लोग फ़र्राटे से अपनी गाड़ियों से चले जा रहे हैं. लेफ़्ट वाले लोग ज़मीन से जुड़े पैदल बढ़े रहे जा रहे हैं. इस संघर्ष में कुदरत ने भी साथ दिया. रोमेंटिक लगने वाली बारिशें क्रूरताओं पर उतर आईं. तेज़ बारिश में लोग भीग रहे हैं.
बस कंडक्टर, ड्राइवर चिल्ला रहे हैं-"*** तुम्हारे बाप की बस है जो पैसे नहीं दोगे. *** पर लात मारकर छत से गिरा दूँगा." मैंने जब चिल्लाते लोगों का वीडियो बनाना शुरू किया तो वो चुप हो गए. रुकी बस चल पड़ी. इन लोगों का कहना था,"जहां झुग्गी लगाकर रह रहे थे, वहां मारने लगे कि यहां से चले जाओ. अपने घर चले जाओ. कोई मत रुको."
रास्ते में गन्नों से लदे ट्रक और खेतों में तैयार गेंहू भी दिखे. लॉकडाउन का असर इन पर भी हुआ तो मैं सोचने लगा कि कौन सी पार्टी चुनावों में किसानों की क़र्ज़माफ़ी को लेकर कैसे लुभावने ऐलान करेंगी. भारत के घोषणापत्रों में बहुत कुछ नया जुड़ने वाला है.दिल्ली से लखनऊ पहुंचते-पहुंचते मददगार लोगों को छोड़ दिया जाए तो कहीं कोई दुकान नहीं मिलती है, जहां आप चाय पी सकें या कुछ खा सकें.
अब जाना सिर्फ़ हिंदी की ख़ौफ़नाक क्रिया नहीं रह गई. हर भाषा के लोग जा रहे हैं और इससे ख़ौफ़नाक कुछ नहीं. ये बड़े दफ़्तर बंद होकर भी शायद ऐसे ही चल रहे हैं. लखनऊ से रायबरेली जाते हुए पीजीआई अस्पताल के आगे से गुज़रते लोग अंदर की तरफ़ डरी नज़रों से देख रहे हैं. गांवों के लोगों ने मास्क की बजाय गमछा लपेटा हुआ है. कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो कह रहे हैं, 'अरे ई कोरोनो वोरोना हमका न होई, ई सब शहरी चोचला हंय.''
कोरोना वायरस के संक्रमण से निपटने हेतु लागू लॉकडाउन के कारण पलायन कर रहे कामगारों की मदद के लिए यूपी सरकार ने 1000 बसों का इंतजाम किया है जिससे लोग अपने गंतव्य स्थान तक बिना किसी परेशानी के पहुँच सकें।पोस्ट ट्विटर समाप्त @myogiofficeकानपुर से आगरा के रास्ते में कुछ किलोमीटर की दूरी पर पुलिस के कुछ सिपाही 100 से ज़्यादा लोगों की भीड़ को रोके खड़े इंतज़ार कर रहे हैं. ये इंतज़ार किसी बस या ट्रक का है. बस या ट्रक के आते ही पुलिसवाले लोगों को बस में चढ़वा रहे हैं.
अबे जिस कार से वहां तुम पहुचे उसी कार से उनको उनके घर भी छोड़ देते, की केवल फोटो खींच कर वापस आ गए
बहुत ही दुखद घटना
पुरी दुनिया मे कोरोना वारस की वजह से लोग डरे और सहमे है , ऐसे मे कुछ दिन के लिये सभी न्युज_चैनलो को वस्तुओ के प्रचार_प्रसार_को_बन्द कर देना चाहिये।उसकी जगह दान और मदद को उठने वाले लोगो को दिखाना चाहिये।🙏🙏🙏🙏
ये सब गरिबोंको बचानेकेलिये है हमे “जहाॅं है वहाॅं रखना “और उन्हे मदत करना ना को किसको जिम्मेदार बनाने मे समय बिताना ये हमारी छोटे हात सबको बचा सकते क्योंके हम पढे लिखे है
Kasam se aankhen nam ho gayi
GUPPIES&PAID INDIAN JHOOTISTAN MEDIA IS BUSY IN JUST CREATING HYPE OF LOCKDOWN WHICH ONLY MIDDLE CLASS&RICH ARE /CAN OBSERVE,BUT NON IS COMING FORWARD TO SOLVE THE PROBLEMS&FEAR OF POOR IN CRORES&IN LAKHS ON ROADS FOR SAFTEY,BETTER GOI DO SOMETHING FOR THEM TOO OTHERWISE ALL FAIL
Bilkul sayi vivrab
दिल्ली से मजदूरों को भगाने के लिए केजरीवाल जिम्मेदार है, प्रवासियों को जरूरी मदद देने के बजाय डीटीसी बसों से आनन्द विहार दोगुना किराया लेकर पहुंचाया।ओ
KAl tak ghar ke paas jane ko bike chahiye wo pedal chal raha hai
Modi je is witness
जिस गरीब पर गुजरी है वहीं जानता है कैसे गुजरी है। वक़्त इस शासन को ज़रूर हराएगा।
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