लता में मजहबी तंगदिली होती तो हम सब उनके गजलों के खजाने से महरूम रह जाते

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जो लोग LataMangeshkar के साथ काम कर चुके हैं, वे इस बात की ताईद करते हैं कि वो मुश्किल लफ्जों के मायने और हाव-भाव समझने की कोशिश करती थीं, सिर्फ उनके सही उच्चारण की नकल नहीं करती थीं. | RakhshandaJalil

को इतनी शोहरत नहीं मिली थी, कि उन्हें देखने भीड़ इकट्ठी हो जाए. वह काम के सिलसिले में मुंबई की ट्रेनों में आसानी से सफर कर लेते थे. एक दिन म्यूजिक डायरेक्टर अनिल बिस्वास, दिलीप कुमार औरदिलीप कुमार ने अनिल बिस्वास से पूछा कि यह नौजवान लड़की कौन है. उन्होंने बताया कि यह एक नई सिंगर है जो बहुत अच्छा गाती है.

कैसे वह ऐसा बयान देते हैं और उन्हें भारत की राजनीतिक सच्चाइयों का खौफ नहीं होता. वह कैसा भारत था, जहां लोगों में शायद अपनी क्षेत्रीय पहचान को लेकर इतने आग्रह नहीं थे. वे बिना सोचे-विचारे-समझे बूझे किसी छोटी सी बात पर खफा नहीं होते थे. यह उस दौर का भारत था, जहां उर्दू के लिए नफरत न थी, और सही उर्दू जानना और बोलना फक्र की बात थी. लोगों को उसमें बगावत की बू नहीं आती थी.उससे भी असाधारण बात लता मंगेशकर की वह कोशिश थी, जो उन्होंने दिलीप कुमार की मजाकिया टिप्पणी के बाद की.

उनकी आवाज की खनक खुदा की रहमत हो सकती है, घंटों घंटों का रियाज उसे और सुरीला बना सकता है. लेकिन शुद्ध उच्चारण, लफ्जों की ‘आवाज’ पर जोर, यह सब उनका अपना किया हुआ था.

 

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