काल्पनिक था और जिसने देश में एफडीआई के प्रवाह को कुंद कर दिया था। यह टैक्स था-रेट्रो टैक्स। इसे वर्ष 2012-13 के बजट में तत्कालीन वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने मूर्त रूप दिया था। इसके तहत भारत में 1962 के बाद जितने बड़े कॉरपोरेट सौदे हुए यानी शेयरों के ट्रांसफर हुए, उन पर कर विभाग को पीछे की तिथि से टैक्स लगाने का अधिकार दे दिया गया था। फिर कर विभाग ने जमकर अपने इस अधिकार का इस्तेमाल किया। लेकिन दो कंपनियों का मामला बहुत ज्यादा गरमा गया। एक थी बहुराष्ट्रीय दूरसंचार कंपनी वोडाफोन और दूसरी थी ऑयल...
यह इतनी बड़ी रकम है, जिसे देने में बड़ी से बड़ी कंपनियों के छक्के छूट जाएं। वर्ष 2015 में तो कर अधिकारियों ने केयर्न के एक अरब डॉलर के शेयर भी जब्त कर लिए। इतना ही नहीं, उसके लाभांश में से 1,140 करोड़ रुपये भी हड़प लिए। दोनों ही कंपनियों ने अंतरराष्ट्रीय अदालतों के दरवाजे खटखटाए और सबसे पहले हेग स्थित स्थायी आरबिट्रेशन में जा पहुंची, जहां फैसला उनके हक में आया। भारत सरकार को अंतरराष्ट्रीय अदालत ने केयर्न एनर्जी को उसके नुकसान की भरपाई के लिए 1.
भाजपा ने 2014 के चुनाव के समय ही यह वादा किया था कि अगर पार्टी सत्ता में आई, तो वह इस अतिवादी टैक्स को समाप्त कर देगी। फिर भी उसने इतना वक्त क्यों लगाया, यह हैरानी की बात है। हो सकता है, इसके पीछे वित्त मंत्रालय को भारी-भरकम रकम दिख रही हो। इस मामले में दो बातें थीं। पहली तो यह कि क्या पहले की तिथि से टैक्स वसूला जा सकता है और दूसरा कि विदेशी संस्थागत निवेशकों से ऐसे किसी टैक्स की वसूली हो सकती है? जब एक कारोबारी सौदा करता है, तो वह मौजूदा कानूनों और नियमों को देखकर करता है। उस समय के ही कानून...
यह इतनी बड़ी रकम है, जिसे देने में बड़ी से बड़ी कंपनियों के छक्के छूट जाएं। वर्ष 2015 में तो कर अधिकारियों ने केयर्न के एक अरब डॉलर के शेयर भी जब्त कर लिए। इतना ही नहीं, उसके लाभांश में से 1,140 करोड़ रुपये भी हड़प लिए। दोनों ही कंपनियों ने अंतरराष्ट्रीय अदालतों के दरवाजे खटखटाए और सबसे पहले हेग स्थित स्थायी आरबिट्रेशन में जा पहुंची, जहां फैसला उनके हक में आया। भारत सरकार को अंतरराष्ट्रीय अदालत ने केयर्न एनर्जी को उसके नुकसान की भरपाई के लिए 1.
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