बीकानेर शहर के हर मोहल्ले में रोशनी से नहाए घर, सजे-धजे पीले कपड़ों में दूल्हा और पीली साड़ी में दूल्हनें नजर आ रही हैं। हर घर-आंगन में खुशियों की गूंज है। दूर-दूर से नाते-रिश्तेदार पहुंच चुके हैं। कहीं हल्दी तो कहीं कुमकुम लगाकर रस्मों को निभाया जा रहा है। घर के बड़े-बुजुर्ग नए कपड़े पहन मेहमानों के स्वागत-सत्कार में लगे हैं। हर घर में बच्चों का हुल्लड़ नजर आ रहा है। इस तरह का नजारा किसी एक घर या मोहल्ले का नहीं है, बल्कि पूरे परकोटा क्षेत्र का है। बीकानेर में इसे 'कहा जाता है। सही शब्दों में...
विवाह से पहले गणेश परिक्रमा के दौरान पारंपरिक पोशाक में आने वालों को गुरुवार देर रात बीकानेर के 'बारह गुवाड़' में सम्मानित करते समाज के बुजुर्ग।इस ओलिंपिक विवाह की हर रस्म खास होती है। दूल्हे सूट-बूट में नहीं आते, बल्कि विष्णु रूप में आते हैं। सूट या शेरवानी पर खर्च की बजाय दूल्हे को पारंपरिक पीले रंग की बनियान पहनाई जाती है और पैंट की जगह पीले रंग की धोती। कांधे पर एक पीतांबर होता है। वहीं सिर पर साफे की बजाय पाग होती है, जिसे विशेष तरह से बांधा जाता है। इसे 'खड़गिया' पाग कहा...
सगाई के बाद जब दोनों परिवारों के रिश्तेदार मिलते हैं तो कुमकुम लगाकर शुभ कार्यों की शुरुआत की जाती है।बीकानेर का पुष्करणा ओलिंपिक पहले 9 साल के अंतराल से होता था। अब ये दो साल के अंतराल से होता है। इससे पहले सात साल और फिर चार साल के अंतराल पर होने लगा था। चार साल के अंतराल से ही ओलिंपिक होता था। इसलिए इस सावे को भी ओलिंपिक कहा जाने लगा।बाहर से आते हैं, विवाह कर जाते हैं
बैंड बाजा बारात सब बहुत कम संख्या में है। ऐसे में ढोल बजाने वाले की थाप पर ही बारात निकल जाती है। ये दृश्य गणेश परिक्रमा के दौरान का है।इस सावे की खास बात ये है कि इसमें किसी तरह का लेनदेन नहीं होता। दहेज के नाम पर लाखों रुपए लेने वालों के सामने पुष्करणा समाज की यह रीत सबसे बड़ा उदाहरण है। गरीब परिवारों को तो सहायता के लिए हाथ उठते हैं। बड़ी संख्या में गरीब परिवारों को विवाह सामग्री के साथ नगदी भी पहुंचाई जाती है। बड़ी बात है कि सहायता देने वाले अपना नाम कभी सार्वजनिक नहीं करते। सारा काम समाज के...
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