वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषकों ने चुनाव आयोग की कड़ी निंदा की है. चुनाव आयोग का पहला काम चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता में लोगों का विश्वास पैदा करना है, लेकिन पिछले एक साल से चुनाव आयोग की स्वायत्तता और निष्पक्ष कार्यप्रणाली सवालों के
चुनाव की घोषणा के बाद भी चुनाव आयोग की विभिन्न गतिविधियों पर सवाल उठे हैं, जैसे कि चुनाव का लंबा कार्यक्रम और अनंतनाग में स्थगित चुनाव. इसके अलावा चुनाव आयोग ने प्रत्येक चरण में मतदान के बाद मतों की संख्या बताने और मीडिया से रूबरू होने की प्रथा भी छोड़ दी है. प्रधानमंत्री के नफरत और गलत सूचना से भरे भाषणों पर चुनाव आयोग की चुप्पी पर भी सवाल उठ रहे हैं.कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने चुनाव आयोग से पहले तीन चरण में पड़े वोटों की संख्या को लेकर सवाल पूछे थे.
अपनी टिप्पणी में हसन ने जोड़ा, ‘पिछले एक दशक में चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर गंभीर संदेह उठाए गए हैं. चुनावों के शेड्यूल और आदर्श आचार संहिता के बार-बार उल्लंघन के बारे में सवाल पूछे गए हैं, जब प्रधानमंत्री या भाजपा के वरिष्ठ नेता कानून का उल्लंघन करते हैं या धर्म या जाति के नाम पर वोट मांगते हैं तो उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती है… चुनाव आयोग की नियुक्ति करने वाली प्रणाली ही उसकी स्वतंत्रता को कम करती है.
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