यूरोपीय संघ से खरीदे जाने वाले माल पर 7.5 अरब यूरो का शुल्क लगाने के अमेरिकी प्रशासन के फैसले से नया वैश्विक व्यापार विवाद भड़कने का खतरा है जिससे वैश्विक मंदी की चिंता पैदा हो गई है. हालांकि अमेरिका के ताजा शुल्क का लक्ष्य यूरोपीय विमान कंपनी है लेकिन उसके निशाने पर ओलिव, व्हिस्की, वाइन, चीज और योगर्ट जैसे यूरोपीय उत्पाद भी हैं. ये शुल्क 18 अक्टूबर से लागू होंगे और यूरोपीय विमानों पर 10 प्रतिशत शुल्क और बाकी चीजों पर 25 प्रतिशत शुल्क होगा.
इसके पहले विश्व व्यापार संगठन की हरी झंडी के बाद अमेरिका ने बुधवार को यूरोपीय संघ के खिलाफ पलटवार करने की शुरुआत कर दी. वाशिंगटन ने घोषणा की कि एयरबस को दी गई गैर-कानूनी सब्सिडी के मुद्दे पर वो 18 अक्टूबर से 7.5 अरब डॉलर के यूरोपीय उत्पादों पर शुल्क लगाएगा. डब्ल्यूटीओ का फैसला उसके इतिहास में दिया गया सबसे बड़ा मध्यस्थता फैसला है और लम्बे समय से चले आ रहे एयरबस-बोइंग विवाद में एक अहम पड़ाव है. ये विवाद पहले से ही तनाव में चल रहे अमेरिका और यूरोप के व्यापारिक रिश्तों के लिए एक खतरा है.
एक वरिष्ठ अमेरिकी व्यापार अधिकारी ने रिपोर्टरों को बताया कि फैसले के बाद यूरोपीय संघ को अब हवाई जहाजों पर 10% और कृषि और औद्योगिक उत्पाद जैसे दूसरे सामानों पर 25% शुल्क का सामना करना पड़ेगा. फैसले के तहत आने वाले उत्पादों की सूची की घोषणा जल्द ही होने की संभावना है. अधिकारी ने ये भी कहा कि हालांकि डब्ल्यूटीओ का फैसला वाशिंगटन को इजाजत देता है कि वो यूरोपीय संघ पर 100% तक शुल्क लगा सकता है, अमेरिका ने तय किया है कि वो मामले को इतना आगे नहीं ले जाएगा.
इस मामले की शुरुआत 2004 में हुई थी, जब वाशिंगटन ने ब्रिटैन, फ्रांस, जर्मनी और स्पेन पर एयरबस के कई उत्पादों के उत्पादन पर गैर कानूनी सब्सिडी और अनुदान देने का इलजाम लगाया था. मामला तब से डब्ल्यूटीओ के पेचीदा विवाद निवारण प्रणाली में फंसा हुआ था, जिसमें कई तरह की अपीलों का मौका मिलता है. लेकिन बुधवार को आए फैसले के खिलाफ कोई अपील नहीं की जा सकती, ऐसा पहला फैसला है जब अमेरिका को इजाजत मिली है कि वो अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानून के तहत यूरोपीय संघ के उत्पादों पर शुल्क लगा सकता है.
विश्व व्यापार संगठन का फैसला छह महीनों में आने की उम्मीद है और संभावना है कि संगठन इस अवधि को नीचे ला सकता है. यूरोप ने जुलाई में संधि का एक प्रस्ताव दिया था, जिसके तहत दोनों पक्ष अपनी अपनी गलती मान लेंगे और जहाज कंपनियों को दी जाने वाली सब्सिडी को घटाने के तरीके ढूंढेंगे. बीते समय में अमेरिका और यूरोपीय संघ इस तरह के समझौते कर चुके हैं.
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