भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाल ही में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की दूसरी कड़ी जारी की. इसके बाद उत्तर प्रदेश में जन स्वास्थ्य की प्रगति को सराहा गया लेकिन जानकार कई अन्य मापदंडों पर यूपी के खराब प्रदर्शन को लेकर चिंतित हैं. मसलन उत्तर प्रदेश में आज भी 50 से कम उम्र की आधी से ज्यादा महिलाओं में खून की कमी है. राज्य में महिलाओं के प्रति हिंसा में कोई खास कमी नहीं हुई है और यहां के लोगों में एचआईवी/एड्स के प्रति जागरूकता में भी काफी कमी आई है.
इतना ही नहीं राज्य में हर पांच में से चार महिलाओं को मां बनने से पहले फॉलिक एसिड जैसी जरूरी दवाएं नहीं मिल पातीं. अभी भी यूपी के सरकारी अस्पतालों में सीजेरियन की सुविधाएं नहीं हैं. इतना ही नहीं तीन-चौथाई बच्चों को जन्म के एक घंटे के अंदर मां का दूध नहीं मिल पा रहा है. जानकार मानते हैं, इन समस्याओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
डॉ नीलम सिंह कहती हैं,"कुपोषण कई वजहों से बना हुआ है. यह एक लंबी और कई चरण की प्रक्रिया है. शादी की उम्र, फैमिली प्लानिंग, अवेयरनेस इन सबका बहुत रोल होता है. ऐसे में किशोरावस्था से ही लड़कियों के स्वास्थ्य पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान दिए जाने की जरूरत है."जानकार सरकारी स्वास्थ्यकर्मियों, जैसे एएनएc, आशा और आंगनवाड़ी कर्मियों की खराब छवि को भी सरकारी प्रयासों के ढंग से लागू न हो पाने की एक वजह मानते हैं.
जानकार मानते हैं यूपी में सरकार की ओर से स्वास्थ्य कार्यक्रमों और बीमारियों के प्रति जागरूकता के कार्यक्रमों में भी कमी आई है, जिससे एड्स जैसी बीमारियों के बारे में लोगों की जानकारी कम हो रही है.
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