यूक्रेन पर रूसी हमले को रोकने में नाकाम संयुक्त राष्ट्र, क्योंकि उसकी भी सीमा है

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“संयुक्त राष्ट्र मानव जाति को स्वर्ग नहीं ले जा सकता, लेकिन नरक से बचा सकता है'' UkraineRussiaWar

व्हॉट्सएप मीम चल रहा है- “मैं इन दिनों यूजलेस महसूस कर रहा हूं, आप सोचिए युनाइटेड नेशंस का क्या हाल होगा.“ इसके साथ हंसते हुआ एक बड़ा सा इमोजी है.

लेकिन तब संयुक्त राष्ट्र की स्थापना इस आधार पर की गई थी कि दूसरे महायुद्ध की विजेता शक्तियां, जो 1943 से खुद को संयुक्त राष्ट्र कह रही थीं , अपने युद्धकालीन गठबंधन को एक शांतिपूर्ण संगठन में बदल देंगी और मित्र बनी रहेंगी. वे दुनिया में पुलिस का काम करेंगी जोकि धमकी देने के बजाय शांति कायम करेंगी. लेकिन हैमरस्क्जोंल्ड और संयुक्त राष्ट्र की कामयाबी की वजह यह थी कि दोनों महाशक्तियां संयुक्त राष्ट्र के दखल के लिए राजी थीं. वे दोनों इस बात पर तो भरोसा नहीं कर सकते थे कि संयुक्त राष्ट्र उनकी तरफ से पहल करे, लेकिन यह काम बीच वाले देशों को सौंपे जाने पर खुश थे.

लेकिन फिर भी वह एक उपयोगी मंच है, जहां सभी देश किसी विषय पर अपने विचारों और कुंठाओं को साझा करते हैं, जैसा कि यूक्रेन के मसले पर देखा गया. अमेरिका भी सुरक्षा परिषद में यह प्रस्ताव लेकर आया, जबकि वह अच्छी तरह से जानता था कि उस पर वीटो होगा. हां, यह भी जानता था कि इस बहस से सिद्धांत और दांव साफ हो जाएंगे और पता चल जाएगा कि रूस दुनिया से अलग-थलग पड़ गया है.

1950 के दशक में जब शीत युद्ध चरम पर था, हैमरस्क्जोंल्ड से पूछा गया था कि संगठन की अपनी क्या सीमाएं हैं, इस पर उन्होंने एक पते की बात कही थी- “संयुक्त राष्ट्र को इसलिए नहीं बनाया गया था ताकि मानव जाति को स्वर्ग में ले जाया जाए, बल्कि इसलिए बनाया गया था ताकि मानवता को नरक से बचाया जा सके.”

 

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