शालिनी अग्रवालजयपुर। मृत लोगों का डिजिटल रीक्रिएशन तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में एआइ नैतिकतावादियों का कहना है कि ये “डेडबॉट्स” उनके बनाने वालों और काम में लेने वालों मानसिक रूप से नुकसान पहुंचा सकती है और यहां तक कि उन्हें “परेशान” भी कर सकती हैं। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का कहना है कि कई ऐसे एप्स और तकनीक हैं, जिनमें चैटबॉट के रूप में अपने मृत परिजनों के “जिंदा” करने और उनसे बात करने की सुविधा दे रही हैंं। इन्हें असाध्य रोगों से पीड़ित माता-पिता को बेचा जा सकता है जो अपने बच्चे...
से निर्मित प्रियजन यह सुझाव देना शुरू कर देता है कि खाना पकाने की बजाय खाना टेकअवे से ऑर्डर कर सकते हैं। जब ऐसी सेवाओं के उपयोगकर्ता बच्चे हों तो बहुत बुरे परिणाम संभव हैं। दुख से उबरने में नहीं मिलती मदद जो माता-पिता अपने बच्चों को माता या पिता के निधन से उबरने में मदद करना चाहते हैं, वे जल्द ही डेडबॉट्स की ओर रुख कर सकते हैं। लेकिन इस बात के बहुत कम सबूत हैं कि ऐसा करने से बच्चों को दुख से उबरने में मदद मिलती है। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है, “कोई भी पुन: निर्माण सेवा यह साबित नहीं कर सकती है...
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