आज अखबार और राजनेता चाहे जैसी तस्वीर पेश करें, इतिहास के तथ्यों और प्रोपगेंडा में काफी अंतर है. इतिहास सबूतों, तथ्यों और तर्कों का इस्तेमाल करता, जबकि प्रोपगेंडा का मकसद बुनियादी सच्चाइयों तक को विकृत करना होता है.किसी मुगल को नायक कैसे माना जा सकता
विडंबना है कि उनके हालिया बयान न केवल भारत के जटिल बहुधार्मिक इतिहास का अपमान करते हैं, बल्कि उनके अपने ही धार्मिक समुदाय नाथ संप्रदाय की जटिलताओं को भी सक्रिय तरीके से नजरअंदाज करने की कोशिश करते हैं. लेकिन अगर हम उन अभिलेखों को पलटें और उनका अध्ययन करें, तो देख सकते हैं कि योगी आदित्यनाथ की विचारधाराएं नाथ योगियों के पूर्व-आधुनिक मान्यताओं की नुमाइंदगी नहीं करते हैं बल्कि वास्तव में अक्सर प्राक्-आधुनिक संप्रदाय के उपदेशों के ठीक उलट हैं.नाथयोगी योगियों का एक बहुरंगी पंथ हैं, जिसका इतिहास लगभग 13वीं सदी से शुरू होता है और जिनके विश्वासों पर जैन, तांत्रिक, मुस्लिम और सिख समुदायों की छाप है.
16वीं सदी की शुरुआत तक, जो मुगलों के शासन की शुरुआत का भी वक्त है, नाथ योगी का अस्तित्व भारतीय योगमार्ग के व्यापक बहुधार्मिक समाज के एक हिस्से के तौर पर स्थापित हो चुका था, जिसकी एक ही तहजीबी जुबान थी. समुदाय की बहुलता और उनके संदेश के समावेशीपन, उनके द्वारा एक ऐसा संदेश देना जो हिंदू और मुस्लिम दोनों ही विधि-विधानों की इजाजत देता था, लेकिन जिसका लक्ष्य दुनियावी विभाजनों के पार जाना था, ने कई मुगल बादशाहों को प्रभावित किया.पहले मुगल बादशाह बाबर ने खुद अपने बाबरनामा में लिखा है कि उसने उस समय के सबसे प्रसिद्ध नाथ केंद्रों में से एक गोरखत्री के योगियों के बारे में सुन रखा था और उस प्रसिद्ध तीर्थस्थल पर जाने का ख्वाहिशमंद था.
ये चित्र अकबर की गोरखत्री की यात्रा के बाद बनवाए गए थे और संभवतः बाबर से ज्यादा अकबर के अपने विचार को प्रकट करते हैं. बाद में यह भी दर्ज है कि अकबर ने बालनाथ टिल्ला को मदद-ए-मआश के तौर पर उपहार में भूमि दी थी. उपनिवेशी गजेटिरयों के मुताबिक मठ ने अकबर के लिखित नोट को 20वीं सदी की शुरुआत तक अपने पास संभाल कर रखा था.लेकिन अकबर का संरक्षण बालनाथ में नाथ योगियों के साथ ही खत्म नहीं हुआ; अपने पूरे शासनकाल में उसने अन्य नाथ केंद्रों को भी संरक्षण देना जारी रखा.
अपनी चिट्ठी में उसने मंदिर के महंत योगी उदंतनाथ को भोआ गांव में दो सौ बीघा जमीन मदद-ए-मआश या अनुदान के तौर पर दी. गैर-मुस्लिम संस्थानों को लेकर उसके शुरुआती रुख में जखबर में नाथ योगियों को संरक्षण देना और ज्यादा आश्चर्यजनक ढंग से योगियों के महंत आनंदनाथ के प्रति उसकी श्रद्धा शामिल है. ऐतिहासिक तौर पर गोरखनाथ मठ का 18वीं सदी तक मुगल शासकों के साथ काफी कम संपर्क रहा. यहां तक कि अवध के नबाव भी इसकी अवस्थिति को मुगल साम्राज्य का पिछला हिस्सा मानते थे.दस्तावेजी तौर पर गोरखपुर में मुगलों की ज्यादा दिलचस्पी न होने के तथ्य ने भी गोरखनाथ मठ के आधुनिक साहित्य को मंदिर की प्राचीनता का गौरवगान करने और यह दावा करने से नहीं रोका है कि इसकी आध्यात्मिक प्रसिद्धि ने कई मुस्लिम शत्रुओं का ध्यान अपनी ओर खींचा जिन्होंने बार-बार इसकी संरचना को ध्वस्त किया.
तू कर तो रिया हे संरक्षण, कर के देख ले।
myogiadityanath shalabhmani
Khud toh kuch kia nahi zindagi mei siwaye hindu muslim riots k......
mugalo ka ithihas bilkul hain....lekin sirf ek lootero ki tarah...jo pehle panah maang kar hindustan ki jami par aaye aur baad me usi mulk me apna ganda khel khela...
Gundanaath Ko Iss se kya matlab, Jhouth, jhansa, jumla Se Hi to bebkuf Bana na hi Sirf Maksad Hai 🤔
मुगलों से इतना प्यार क्यों है?
Every single word is true. आज के समय में सामान्य इस्लाम विरोधी प्रोपगेंडा, और अपने समर्थकों की भावनाओं को सहलाने के लिए की जानेवाली राजनीतिक बयानबाजी- जिसे लगातार ज्यादा से ज्यादा असहिष्णु हो रहे भारत में स्वीकार कर लिया गया है। भारत की मूल आत्मा का प्रतिदिन हरण किया जा रहा है।
इंडिया ताज़ा खबर, इंडिया मुख्य बातें
Similar News:आप इससे मिलती-जुलती खबरें भी पढ़ सकते हैं जिन्हें हमने अन्य समाचार स्रोतों से एकत्र किया है।
स्रोत: Amar Ujala - 🏆 12. / 51 और पढो »
स्रोत: AajTak - 🏆 5. / 63 और पढो »
स्रोत: AajTak - 🏆 5. / 63 और पढो »
स्रोत: Amar Ujala - 🏆 12. / 51 और पढो »
स्रोत: AajTak - 🏆 5. / 63 और पढो »
स्रोत: Dainik Jagran - 🏆 10. / 53 और पढो »