बीबीसी संवाददाताएक मुसलमान औरत के पास अपने पति को तलाक़ देने के क्या विकल्प हैं? केरल हाईकोर्ट ने इस सवाल पर लंबी चर्चा के बाद फ़ैसला सुनाया है.इसका मतलब ये है कि भारतीय क़ानून के तहत तलाक़ देने के प्रावधान के अलावा, अब मुसलमान औरतों के पास शरिया क़ानून के तहत दिए गए चार रास्ते भी उपलब्ध होंगे और उन्हें 'एक्स्ट्रा-जुडीशियल' नहीं माना जाएगा.
केरल फ़ेडरेशन ऑफ़ वुमेन लॉयर्स की वरिष्ठ वकील शाजना एम. ने बीबीसी से बातचीत में बताया, "कोर्ट का रास्ता मुसलमान औरतों के लिए बहुत मुश्किल रहा है, कई बार दस-दस साल तक केस चलते हैं, ख़र्चा होता है, वक़्त लगता है और पति के व्यवहार को साबित करने के लिए कई सबूत जुटाने पड़ते हैं." इसका एक मक़सद फ़ैमिली कोर्ट पर अधिक मामलों के दबाव को कम करना है और दूसरा मुसलमान महिलाओं के तलाक़ देने का अधिकार सुनिश्चित करना भी है.
•तलाक़-ए-तफ़वीज़ - जब शादी के कॉन्ट्रैक्ट में ही औरत ये लिखवाती है कि किस सूरत में वो अपने पति को तलाक़ दे सकती है. मसलन, अगर वो बच्चों की परवरिश के लिए पैसे ना दें, परिवार को छोड़ कर चले जाएं, मार-पीट करें वग़ैरह. 'फ़स्क' के अलावा बाक़ी रास्तों के लिए कोर्ट ने कहा है कि जहां तक हो सके फ़ैमिली कोर्ट सिर्फ़ इन फ़ैसलों पर मुहर लगाए, इन पर और सुनवाई ना करे.शाइस्ता रफ़त इस फ़ैसले की सराहना करते हुए इसे औरतों के हक़ों के लिए सही क़दम बताती हैं.
केरल हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान 'इंटरवीनर' के तौर पर, यानी विशेष जानकारी सामने रखने के लिए शाजना एम. ने भी अपनी दलील में ये बताया.
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Corona की भी न्यूज कवरेज करते है क्या आपके मीडिया कर्मी । अगर करते है तो कुछ उसकी भी खबर दिखाओ ? क्या इंतजाम किए है सरकार ने , कितने टीके लग चुके ।
koee kanoon banane layak nahi hein, bas apni niyat, apni soch ka udharan deti sarkar
बड़े जाहिल हो तुम मीडिया कर्मी भी।
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