रत्ना बेगम ने बीबीसी को बताया कि नई कंपनी में क़रीब एक महीना काम करने के बाद उनके पति ने वहां से भागने का प्रयास किया था.बांग्लादेश में कुष्टिया के भेड़ामारा उप-ज़िला के मासूम अली बीती जनवरी में मज़दूरी करने के लिए मलेशिया गए थे.
उसके बाद उन पर शारीरिक अत्याचार का सिलसिला शुरू हो गया. रत्ना को बीते एक महीने से अपने पति के बारे में कोई सूचना नहीं मिली है.मुस्लिम स्वाधीनता सेनानी ने दिया था 'भारत माता की जय' का नारा?वह बताती हैं, "अप्रैल में ईद से कुछ दिन पहले अचानक एक दिन मेरे पास पति का फ़ोन आया था. उन्होंने बताया कि उनके साथ काफ़ी मारपीट की जा रही है. कान के पास से ख़ून बह रहा है. पति ने वीडियो कॉल पर अपनी चोट दिखाई थी. उन्होंने उस दिन कहा था कि यह लोग मुझे मार डालेंगे, मुझे बचा लो.
लेकिन मलेशिया जाने वाले बांग्लादेशी मज़दूरों को आख़िर किन हालात का सामना करना पड़ रहा है? यह भी एक बड़ा सवाल है कि वहां बांग्लादेश के मज़दूरों को अत्याचारों का सामना क्यों करना पड़ रहा है?मन्नान मियां बांग्लादेश की राजधानी ढाका से आठ महीने पहले मलेशिया गए थे. उनके साथ एक ही कंपनी में काम करने के लिए एक ही उड़ान से 35 दूसरे लोग भी गए थे.
मन्नान मियां समेत सात लोगों ने उस कंपनी से पलायन करने के बाद दूसरी कंपनी में काम शुरू किया है. लेकिन उनके पास अब तक कोई वैध दस्तावेज़ नहीं हैं. ऐसे में वह लोग फ़िलहाल पुलिस के हाथों गिरफ़्तारी के आतंक के बीच दिन काट रहे हैं.मलेशिया पहुंचने के बाद बांग्लादेशी मज़दूरों को सबसे पहले जिस धोखाधड़ी का शिकार होना पड़ता है वह है वहां कोई काम नहीं होना. यानी जिस काम के लिए उनको वहां ले जाया जाता है वहां वह काम या नौकरी ही नहीं है. इसके बाद अपर्याप्त वेतन का मुद्दा आता है.
कुआलालंपुर में रहने वाले प्रवासी मजदूर खालेक मंडल बताते हैं कि कुल मिला कर वहां पहुंचने के बाद ज्यादातर मजदूर बंधक जैसी स्थिति में रहने पर मजबूर हो जाते हैं. ब्यूरो ऑफ़ मैनपावर, एम्प्लॉयमेंट एंड ट्रेनिंग के आंकड़ों के मुताबिक़, वर्ष 1976 से 2023 तक बांग्लादेश से 1.60 करोड़ प्रवासी मज़दूर दुनिया के विभिन्न देशों में जा चुके हैं. इनमें से सबसे ज़्यादा क़रीब 57 लाख सऊदी अरब में गए हैं.
उनमें कहा गया था कि बांग्लादेश के हज़ारों मज़दूर वहां अमानवीय जीवन बिता रहे हैं. इसके अलावा कम मज़दूरी मिलना, बेरोज़गार रहना, अत्याचार और ग़ैर-क़ानूनी स्थिति में फंस जाने जैसे मुद्दे भी उसी समय सामने आए थे. उनका कहना था कि बांग्लादेश और मलेशिया की सरकार को मज़दूरों की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया को बदलना चाहिए ताकि मज़दूरों को दुर्व्यवहार का शिकार होने से बचाया जा सके.विस्तृत जांच-पड़ताल के बाद ही बांग्लादेश सरकार उन लोगों को अंतिम मंज़ूरी देती है. ऐसे मामलों में मलेशिया में जिन कंपनियों में नौकरी दी जा रही है उसकी वास्तविक स्थिति के बारे में पता लगाने की ज़िम्मेदारी मलेशिया स्थित बांग्लादेश उच्चायोग की है.
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