इस बारे में अरसे से कहा जा रहा है कि हमारी यह धरती और इसका पूरा पर्यावरण औद्योगिक क्रांति के डेढ़ सौ बरस में ही इतना ज्यादा बदल गया कि वैसा कुछ पृथ्वी पर जीवन के विकास के हजारों साल लंबे इतिहास में कभी नहीं हुआ। इसका अहसास करीब 50 वर्ष पहले ही विज्ञानियों को हो गया था। इसकी एक गवाही करीब चार दशक पूर्व जेनेवा में आयोजित पहले जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में मिली थी, जिसमें जुटे विज्ञानियों ने जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहे तमाम बदलावों पर चिंता जताई थी। दो साल पहले कुछ वैसी ही चिंता दुनियाभर के...
विज्ञान के एक जर्नल ‘बायोसाइंस’ द्वारा भारत समेत दुनिया के 153 देशों के 11,258 विज्ञानियों के बीच कराए गए शोध अध्ययन में कहा गया था कि पिछले 40 वर्षो में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन और आबादी बढ़ने के साथ पृथ्वी के संसाधनों के अतिशय दोहन, जंगलों के कटने की रफ्तार बढ़ने, ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने और मौसम के पैटर्न में बदलाव से हालात सच में क्लाइमेट इमरजेंसी वाले हो गए हैं। अब आइपीसीसी की रिपोर्ट कह रही है कि बढ़ते तापमान से दुनिया भर में मौसम से जुड़ी और भी भीषण आपदाएं आएंगी।सच तो यह है कि...
हमारा देश तकनीकी तौर पर इस दिशा में आगे बढ़ रहा है। अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन समेत कई विकसित देशों ने इस बारे में समयसीमा तक निश्चित कर दी है। इसी के साथ साथ सौर, पवन और ज्वार ऊर्जा के क्षेत्र में हर दिन कुछ नया हो रहा है। भारत जैसे गर्म देशों के लिए सोलर एनर्जी एक बेहतर विकल्प है और इस बारे में खबरें ये हैं कि यह तकनीक दिनोंदिन सस्ती व पहले के मुकाबले एफिशिएंट हो रही है। यूरोप में कई ऐसे शहर विकसित किए जा रहे हैं जो शून्य कार्बन उत्सर्जन करते हैं या आगे चलकर ऐसे हो जाएंगे। यानी वहां आपको कहीं...
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