भास्कर एक्सप्लेनर: अफगानिस्तान की 200 लाख करोड़ रुपए की खनिज संपदा पर है चीन की नजर; इसलिए खड़ा है तालिबान के साथ; जानिए सब कुछ

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भास्कर एक्सप्लेनर: अफगानिस्तान की 200 लाख करोड़ रुपए की खनिज संपदा पर है चीन की नजर; इसलिए खड़ा है तालिबान के साथ; जानिए सब कुछ Aghanistan china taliban ravibhajni

अफगानिस्तान में 20 साल बाद सत्ता में लौटे तालिबान से कोई अगर खुश है तो वह है चीन। चीन के अलावा रूस और पाकिस्तान ही ऐसे देश हैं, जो अफगानिस्तान के नए तालिबान शासन के लगातार संपर्क में हैं। तीनों ही देशों ने काबुल में अपने दूतावास खोल रखे हैं, जबकि भारत समेत दुनिया के ज्यादातर देशों के दूतावास अपने बोरिया-बिस्तर समेट चुके हैं।

अब तक तालिबान शासन को कूटनीतिक मान्यता देने का मामला हो या सबसे पहले दोस्ती का हाथ बढ़ाने का, चीन सबसे आगे रहा है। आखिर तालिबान को इसकी ही तो जरूरत है, जिसके बदले में चीन अपनी शर्तें भी उस पर थोप सकता है। 25 अगस्त को चीन के राजदूत वांग यू ने काबुल में तालिबान के पॉलिटिकल ऑफिस में डिप्टी हेड अब्दुल सलाम हनाफी से मुलाकात की। यह किसी भी देश के डिप्लोमैट की तालिबान प्रशासन से पहली मुलाकात है। यानी, पूरी दुनिया से मान्यता चाहने वाले तालिबान को चीन पूरी तरह से मदद कर रहा है।

2002 से ETIM को UN सिक्योरिटी काउंसिल अल-कायदा सैंक्शंस कमेटी ने आतंकी संगठन के तौर पर लिस्ट में डाला है। हालांकि, अमेरिका ने 2020 में इस संगठन को आतंकी संगठनों की सूची से बाहर निकाल दिया था। इससे दोनों देशों में ट्रेड वॉर ने एक अलग ही मोड़ ले लिया। अमेरिकी डिफेंस डिपार्टमेंट ने 2010 में अफगानिस्तान को ‘लिथियम का सऊदी अरब’ कहा था। इसका मतलब यह है कि मिडिल ईस्टर्न देश से कच्चे तेल की दुनियाभर को जिस तरह सप्लाई होती है, वैसी ही सप्लाई अफगानिस्तान से लिथियम की हो सकती है।

 

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