पिछले दिनों देश के दो राज्यों की अदालतों के दो अलग-अलग निर्णयों ने विवाह-दुष्कर्म के मुद्दे पर बहस को पुन: छेड़ दिया। इस बहस की शुरुआत निर्भया कांड के बाद जस्टिस जेएस वर्मा कमेटी की ‘वैवाहिक दुष्कर्म’ को आपराधिक बनाने की सिफारिश’ से शुरू हुई थी। एक ओर मुंबई की अदालत ने पत्नी की इच्छा के विरुद्ध उससे दैहिक संबंध बनाने को अपराध नहीं माना। दूसरी ओर केरल उच्च न्यायालय ने इससे इतर विवाह विच्छेद के संबंध में दिए गए अपने निर्णय में कहा कि पत्नी के शरीर को पति द्वारा अपनी संपत्ति समझना और उसकी इच्छा के...
कुछ वर्ष पहले दिल्ली उच्च न्यायालय में वैवाहिक दुष्कर्म को आपराधिक बनाने संबंधी जनहित याचिकाओं के संदर्भ में केंद्र ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि अगर ऐसा किया जाता है तो ‘विवाह संस्था ढह जाएगी।’ केंद्र की इस दलील को स्त्री विरोधी और पुरुषसत्तात्मक व्यवस्था का पोषण करने वाली कहा गया, परंतु सिर्फ यह मान लेना उचित नहीं कि जब तमाम देश वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में सम्मिलित कर सकते हैं तो फिर भारत क्यों नहीं? क्या कानून का निर्माण अन्य देशों की नकल कर किया जाना तार्किक है? ‘भारतीय...
वैवाहिक दुष्कर्म को आपराधिक बनाने से पूर्व एक गहन सामाजिक शोध की आवश्यकता है। इस दिशा में सिर्फ भावनाओं के वशीभूत होकर आगे बढ़ना खतरनाक हो सकता है। इसमें किंचित भी संदेह नहीं कि स्त्री का उसकी देह पर एकाधिकार है और इस एकाधिकार पर कुठाराघात करने का अधिकार किसी को भी नहीं है। फिर चाहे वह पति ही क्यों न हो। पत्नी की इच्छा के विरुद्ध उससे दैहिक संबंधों की स्थापना घोर अमानवीय कृत्य है, परंतु क्या इसका समाधान वाकई कानून बनाने से निकल सकता है? अगर ऐसा होता तो दुनिया भर में जितनी सामाजिक समस्याएं हैं,...
पूर्वाग्रहों से ग्रसित कोई भी समाज समानता के धरातल पर खड़ा नहीं हो सकता। यह ध्यान रहे कि न्यायालय के समक्ष ऐसे कई मामले आए हैं, जहां मायके पक्ष के दबाव में महिलाओं ने पतियों के विरुद्ध 498 ए के मिथ्या आरोप लगाकर प्रताड़ित किया। वैवाहिक दुष्कर्म के संबंध में अगर पत्नी मिथ्या आरोप लगाती है तो क्या पुरुष के लिए कोई दरवाजा ऐसा खुला होगा, जहां वह अपना पक्ष रख सके? इस प्रश्न के पीछे महिलाओं के संरक्षण के लिए पूर्व में बना घरेर्लू ंहसा से संरक्षण कानून है, जो एकतरफा दृष्टिकोण रखता है। जिन देशों में...
दिल्ली की एक अदालत ने 2016 में कहा था कि ‘महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून बनाए जा रहे हैं और उनमें से कुछ का दुरुपयोग हो सकता है, लेकिन कोई भी किसी पुरुष के सम्मान और गरिमा की बात नहीं करता।’ ऐसे में यह जरूरी है कि भविष्य में कोई भी कानून लिंगभेद की जड़ों को मजबूत न करे। तभी वह अपने अपेक्षित उद्देश्य में सफल हो सकेगा।
saraswatsamant BJP4India Inc unwomenindia जैसे आपके महिला कानूनों का दुरूप्योग हो रहा है उसके बारे आप का क्या कहना है।
saraswatsamant BJP4India Inc unwomenindia मैडम आप तो हमसे ज्यादा पड़ी लिखी हो हर चीज मर्यादा में ही अछि लगती है चाहे औरत हो या मर्द।
saraswatsamant BJP4India Inc unwomenindia नारी मा के रूप में बहन के रूप में और पत्नी के रूप में होती है इनमे से माँ ही क्यों अछि होती है।हमे लगता है आपकी बहुरिया आपको अपनी माँ से ज्यादा मानती है
saraswatsamant BJP4India Inc unwomenindia मैडम कोई पत्नी अगर अपने पति पर अत्याचार करती उसका क्या।
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