प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2015 में अमरीका के दौरे पर थे और फ़ेसबुक के संस्थापक-सीईओ मार्क ज़करबर्ग ने अपने मुख्यालय में उनके लिए एक टाउनहॉल आयोजित किया था.
बहरहाल, इस मामले को पूरे छह साल हो चुके थे और इस बीच फ़ेसबुक ने भारत में लोकप्रियता की एक नई मिसाल बना डाली थी. ये दोनों काफ़ी संवेदनशील विषय हैं जिनके बारे में कम ही लोग ठीक से जानते-समझते हैं. अमरीका के एक चर्चित मामले की मदद से इन दो मसलों को ठीक से समझा जा सकता है.इस कंपनी पर करोड़ों फ़ेसबुक यूजर्स का डेटा हासिल करने और उसका इस्तेमाल अमरीकी राष्ट्रपति चुनावों में डोनल्ड ट्रंप को फ़ायदा पहुंचाने के लिए इस्तेमाल करने के आरोप हैं.यह डाटा एक क्विज़ के ज़रिए हासिल किया गया था, जिसमें यूज़र्स को कुछ सवालों के जवाब देने थे.
राजनीतिक तूफ़ान खड़ा होने के साथ फ़ेसबुक यूज़र्स के डाटा की सुरक्षा पर इससे पहले, इतना बड़ा सवाल कभी नहीं उठा था. दोनों कंपनियां जब एक साथ भारत के एक उभरते हुए क्षेत्र में बड़ी क्रांति लाने का दावा कर रही हैं, तो सवाल ये भी उठता है कि जो भी जानकारियां उपभोक्ता कंपनी से साझा करेंगे, उसका इस्तेमाल कब, कहां और किस तरीक़े से होगा इस मामले में पारदर्शिता बढ़ाने की ज़्यादा ज़रूरत है.फ़ेसबुक ने जिस रफ़्तार से लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुँचने में कामयाबी हासिल की है वो बेजोड़ कही जाती है.
रिपोर्ट में फ़ेसबुक-इंडिया की पब्लिक पॉलिसी प्रमुख, अंखी दास पर आरोप लगे कि अपने पद पर रहते हुए उन्होंने तीन हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों और लोगों के ख़िलाफ़ ‘हेट-स्पीच’ के नियम के तहत कार्रवाई नहीं की. बीजेपी के कई नेताओं पर हेट स्पीच के मामले में कंपनी के ज़रिए कार्रवाई नहीं होने दी. इस रिपोर्ट के प्रकाशित होते ही भारत की विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने फ़ेसबुक के अधिकारियों और भारतीय जनता पार्टी कीकरते हुए फेसबुक के संस्थापक और सीईओ मार्क ज़करबर्ग को पत्र लिखकर इस मामले की जांच की माँग की.
हालांकि वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के बाद फ़ेसबुक प्रवक्ता की ओर से सभी आरोपों को ख़ारिज़ करते हुए बीबीसी को फेसबुक ने ईमेल के ज़रिये बताया कि, “किसी भी तरह की हिंसा या नफ़रत फैलाने वाली सामग्री फेसबुक पर प्रतिबंधित है. ये मायने नहीं रखता कि पोस्ट लिखने वाले का राजनीतिक रुझान किस तरफ़ है.”फ़ेसबुक भारत में ख़तरनाक सामग्री के विषय पर ध्यान देने में नाकाम रहा है.
चंद हफ़्तों पहले सुप्रीम कोर्ट ने पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने वाले मंडल आयोग की सिफ़ारिशों को सही ठहराया था. चर्चा में ज़्यादातर छात्र एमए के थे जो या तो सेंटर फ़ॉर पॉलिटिकल स्टडीज़ के थे या सेंटर फ़ॉर इंटरनैशनल स्टडीज़ में पढ़ रहे थे.
Result of fictitious accounts
सोसल मीडिया गैर लाभकारी संस्था है vypar कैसा
क्यूं की फेसबुक मैं अभी बोहत सारे फेक नकली अकाउंट बनाए गए है ! आप आपने असली ओरिजिनल अकाउंट से मोदी जी या फिर राहुल जी इनके बारे में अच्छा या बुरा बोलो तो दोनो के फेक अकाउंट से समंथक समर्थन करने वाले बुरा भला बोलेंगे गाली देंगे ये बोहात गलत है फेक अकाउंट बंद होने चाहिए जय भारत 🇮🇳
ये भी एक रोजगार है
Hanji , our isme se adhe to BJP it cell ke fake account hai
Power of fake account cutiiii angel 😂😂😂😂
Tab jabki main FB nahi chalata!
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