दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर एक अनूठा नजारा देखने को मिला. यहां हर ओर सेवा करते सैकड़ों लोग दिखाई दिए. कोई चाय बांटता नजर आया, कोई खाना बांटता हुआ तो कोई बीमारों को दवा देता हुआ. सबसे बड़ी बात तो यह है ऐसे सेवादारों में किसी एक मजहब के लोग नहीं बल्कि हर धर्म से जुड़े लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं.वैसे तो गाजीपुर बॉर्डर पर तीन-तीन लंगर चल रहे हैं जिसमें इस आंदोलन को समर्थन देने वालों को तीनों वक्त खाना खिलाया जाता है. लेकिन सबसे बड़ा लंगर दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का है.
देवेंद्र सिंह बताते हैं कि सुबह की चाय से शुरू होकर रात के खाने तक उनका रसोईघर लगातार चलता रहता है. चाय तो 24 घंटे मिलती है. मनमोहन सिंह कहते हैं कि यहां पर सब्जी और दाल बनाई जाती है लेकिन रोटियां बाहर के गुरुद्वारे से आती हैं क्योंकि यहां पर बनाने के लिए उनके पास बड़ी मशीन नहीं है.दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के इस लंगर से कुछ दूर पर ही भारतीय किसान यूनियन का अपना लंगर है. जब आज तक की टीम वहां पहुंची तो गरम-गरम पूरियां मिक्स वेजिटेबल के साथ किसानों को खिलाई जा रही थीं.
चेतन बताते हैं कि हर रोज वह अलग-अलग किस्म का खाना बनवा रहे हैं. लोगों के लिए पकौड़े से लेकर राजमा-चावल सब का इंतजाम किया जा रहा है. चेतन त्यागी यह भी बताते हैं कि यहां पर हर रोज कम से कम ढाई से तीन हजार लोगों का खाना तो बनता ही है. किसान यूनियन इसका खर्चा खुद उठा रही है और किसानों से कोई भी चंदा नहीं लिया जा रहा है.
थोड़ी दूर चलने पर एक दवाखाना खुला है. बीमार खासतौर पर बुजुर्ग मरीज वहां आते हैं और इस डिस्पेंसरी में बैठे दो डॉक्टरों से सलाह मशवरा कर अपनी दवाई ले जाते हैं. इस डिस्पेंसरी का रोचक पहलू यह है यह डिस्पेंसरी भी गुरुद्वारा प्रबंधन के जरिए ही चलाई जा रही है. लेकिन इसमें बैठने वाले दोनों डॉक्टर मुसलमान हैं. इनमें से एक का नाम है डॉक्टर सुभान चौधरी तो दूसरे का नाम है डॉक्टर मोहम्मद अकील. हर तरह की परेशानियों को लेकर लोग आते हैं जिनमें से ज्यादातर सर्दी से सताए हैं या फिर पेट से जुड़ी बीमारियां हैं.
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