26 साल के भारतीय एयरोनॉटिकल इंजीनियर रॉबिन एस. का कहना है,"अगर मैं कर सकता तो भारतीय जनता पार्टी को ही वोट करता.” रॉबिन जर्मनी के वुर्त्सबुर्ग शहर में रहते हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया,"मुझे अपने देश में चल रही गतिविधियों की जानकारी रखना पसंद है. मैं चाहे कहीं भी रहूं, भारतीय ही रहूंगा.
मोदी और उनके विरोधी विदेशों में बसे भारतीय समुदाय से समर्थन की उम्मीद रखते हैं, लेकिन भारतीय कानून के अनुसार रॉबिन जैसे कई एनआरआई देश के बाहर से मतदान नहीं कर सकते. उन्हें अपना नाम दर्ज कराने के बाद मतदान के दिन भारत में उपस्थित रहना होगा. भाजपा के विदेश मामलों के समन्वयक विजय चौथाईवाले का कहना है कि कई भारतीय नागरिकों के लिए सिर्फ मतदान के लिए भारत पहुंचना कठिन लगता है, लेकिन मोदी के तीसरे कार्यकाल के लिए वह रैलियां, सामुदायिक बैठक और प्रार्थना जैसी धार्मिक गतिविधियां करना चाहते हैं.
राजनीतिक विश्लेषक इस बात को मानते हैं कि आधुनिक भारतीय इतिहास में प्रवासियों का प्रभाव कुछ खास नहीं रहा है. हालांकि 2014 में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद से इस रुझान में बदलाव आया है. बीजेपी और ‘संघ परिवार' राष्ट्रवादी हिंदू संगठनों के साथ कुछ चुने हुए प्रवासियों से मिलकर राजनीतिक समर्थन और वित्तीय संसाधन जुटाने के लिए आगे आए हैं. रूपारेलिया कहते हैं,"प्रभावी एनआरआई सदस्य अपने देश और सरकार के लिए बेहतरीन प्रतिनिधि हो सकते हैं.
एक खास बात और है कि प्रवासी भारतीयों में प्रधानमंत्री मोदी का खासा प्रभाव है. रूपारेलिया इस ओर इशारा करते हैं कि विदेशों में रहने वाले भारतीय, प्रधानमंत्री के विदेशी दौरों के दौरान उनके भाषण सुनने के लिए व्यक्तिगत रूप से पहुंचते हैं. वह कहते हैं,"उनके अंतरराष्ट्रीय दौरे, विदेशी नेताओं के साथ मुलाकात और भव्य सभाएं उनकी छवि को देश के अंदर और बाहर मजबूत बनाने में मदद करती है.
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