ब्लैकबोर्ड: दरबारी गायिका थीं जरीना बेगम:15 मिनट पहलेमैं जरीना बेगम की बेटी रुबीना हूं। मेरी मां नवाब, जमींदार और राजाओं के दरबार में ठुमरी, दादरा और गजल गाती थीं। वह दरबार गायिका थीं। इसी गायकी ने मलका जान, उनकी बेटी गौहर जान, मुश्तरी बाई और छप्पन छुरी को पैदा किया। फिर बेगम अख्तर आईं और उनकी आखिरी शिलोग उनकी गायकी पर हजारों रुपए उस समय न्योछावर करते थे। वह आंखें बंद कर गाने में इस कदर मगन रहतीं कि उन्हें पता भी नहीं चलता कि न्योछावर के पैसे कौन ले गया। उन्होंने मुझे इस माहौल से दूर रखा। आज...
लकवा ग्रस्त जरीना बेगम को आखिरी दिनों में अपने इलाज के लिए तड़पना पड़ा। आज उनकी थाती के नाम पर चार-छह बनारसी और सिल्क की साड़ियां, एक पुराना हारमोनियम, एक तबला, हाथ से लिखे उर्दू गीत, एक ट्राई साइकिल और कुछ फोटो हैं। जगह इतनी छोटी कि आखिरी सीढ़ी पर ही दाएं हाथ दरवाजा खुलता है। खूब जोर-जोर से दरवाजा पीटने के बाद सात साल की एक छोटी बच्ची ने दरवाजा खोला। मुझे देखा और फिर दरवाजा बंद कर दिया।
मेरे सवाल पूछने से पहले ही जरीना बेगम की बेटी रुबिना खातून बोलती हैं, ‘मेरी मां ने कभी मुझे अपने साथ नहीं रखा। उन्हें लगता था कि उनकी मजलिस के बारे में बेटी को मालूम नहीं होना चाहिए। मैं अपनी खाला के घर पर बड़ी हुई। जरीना बेगम की बेटी रुबीना खूब पान खाती हैं। उनके परिवार को जानने वाले कहते हैं कि पान खाने की आदत और तौर-तरीका सब रुबीना की अपनी मां जरीना बेगम जैसा है। बातचीत करते वक्त वह टेक लेकर बैठती हैं और जब किसी को पीने का पानी भी देती हैं तो दोनों हाथ से ग्लास पकड़कर।
अखिलेश यादव उस वक्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। उन्होंने हमारी मदद की थी। आखिर हमें लोगों के सामने हाथ ही फैलाना पड़ा न। एक और बात यह कि अम्मी को गए छह साल होने को हैं, हमने अभी तक उनकी बरसी नहीं की है। हमारे पास इसके लिए पैसे ही नहीं हैं।’ मोहम्मद नावेद जब ये बातें मुझसे कह रहे हैं, तब वह पूरी तरह से पसीने से तर हैं। मैं उनसे इसका कारण पूछता हूं। जवाब मिला- अभी-अभी मैं ई-रिक्शा चलाकर लौटा हूं।
ये सब बातें पर्दे के पीछे की हैं। जरीना बेगम के समय तक दरबारी गायिकी बची थी, तभी तो इस गायिकी की वह मल्लिका थीं। उनके बाद सब खत्म हो गया। उसे गलत रूप दे दिया गया। आज जो लोग उनके परिवार के होंगे भी तो आपसे बात नहीं करेंगे।’ अयूब कहते हैं, ‘मैंने तीन साल से तबला नहीं छुआ। आप कहेंगे तो बजा दूंगा। मन टूट गया है। जरीना जी के जाने के बाद मुझे एकाध प्रोग्राम मिल जाते थे, उसे भी कुछ लोगों ने बंद करा दिया। कहते हैं कि इस्लाम में यह सब गुनाह है। अल्लाह को यह सब नहीं पसंद।’‘एक जमाना था कि जब अम्मी के लिए भी चांदी की थाली में खाना आता था। वह कार में घूमती थीं। कई बार तो 12 घंटे से ज्यादा गाती थीं। रामपुर में रानियों के बीच में महफिल सजती थी तो पूरा हॉल महकता रहता था।’‘हां, मंच पर मुझे वह कलाकार की तरह रखती थीं। घर लौटते ही...
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