बिहार में NDA में बंटी सीटें, फायदे में रहे नीतीश-पासवान

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जेडीयू के साथ आने के चलते बीजेपी को अपनी जीती हुई सीटों से कम पर चुनावी मैदान में उतरने के लिए मजबूर होना पड़ा है.

 

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Akhiri sauda bazì

2019 में bjp को सत्ता में भी रखने का कोई प्रस्ताव नहीं। कर लो जितने चाहे गठबन्धन कर लो जितनी चाहे जुगाड़ चुनाव में वोट तो हम ही देंगे। हमारा 20 करोड़ वोट पुरानी पेंशन बहाल करने वाली पार्टी को--------------?

..

Ess se saaf pata chalta hai ke Hawa BJP aur Modi ji ke saath nhi hai , BJP jaa rahe hai , Rahul Gandhi aa rahe hai .

कहाँ गया सब मोदी का चेहरा

NDA should project Paswan as their prime ministerial candidate. This man is well versed in art of negotiation.

Majboor ye haalat idhar bhi hai udhar bhi.😁

मौके का फायदा उठा रही हैं, दोनों पार्टीयां।

Bjp k sath jdu or lojpa ka v lotya dobne wala hai.

2014 बाला लहर नही है 75% एम.पी इस बार हारेगा इस बार। ये गठबधंन को

Rahul Gandhi ka darr BJP ko ghutne bal chalne per majbur kar dya he

કોઈ આપના સાગા વહાલા જો વટામણ તારાપુર હાઇવે થી જતા હોય કે આવતા હોય તો કૃપા કરી ને તેમને જાણ કરી દો..... સાબરમતી પુલ જોખમી હાલત માં છે... વિડિઓ જુઓ....

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बेबाक बोल: रोजगार का राजरोटी, कपड़ा और मकान, मांग रहा है हिंदुस्तान। आजादी के बाद से ही इस तरह के नारे उन सत्ताधारियों के खिलाफ गूंजा करते थे जो इन बुनियादी जरूरतों को मुहैया करवाने के लिए जिम्मेदार थे। ये तीनों जरूरतें आज एक शब्द में सिमटी हैं और वह है रोजगार। पिछले तीन दशकों से नवउदारीकरण के राजमार्ग पर दौड़ रही अर्थव्यवस्था में पूंजी तो वैश्विक हो गई, लेकिन काम करने वाले हाथों के बीच स्थानीय, बाहरी, प्रवासी और वीजा की दीवार खड़ी कर दी गई। बढ़ती जनसंख्या के हिसाब से रोजगार देने में नाकाम रहीं सरकारें इसी आधार पर नागरिकों से भेदभाव की राजनीति भी कर रही हैं। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप से लेकर मध्य प्रदेश में नए कांग्रेसी मुख्यमंत्री तक, पिछली सरकारों के असंतोष के खिलाफ चुनाव तो जीत जाते हैं। लेकिन इनके पास उस असंतोष यानी बेरोजगारी को दूर करने का कोई रोडमैप नहीं है जिसके खिलाफ वोट मांगा था। मौजूदा सरकार की नाकामियों से चुनाव जीतने के बाद अपनी नाकामी छुपाने के लिए पहले ही धर्म और विभिन्न पहचानों में बंटी जनता को स्थानीय और बाहरी का ठप्पा लगा बांटने की कोशिश करते हैं। रोजगार के मुद्दे पर भेदभाव वाली इसी राजनीति पर बेबाक बोल।
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उत्तर प्रदेश: दोबारा ऐतिहासिक जनादेश हासिल करने साथ आई सपा-बसपाउत्तर प्रदेश में सपा-बसपा, कांग्रेस से गठबंधन नहीं चाहते, या कांग्रेस अकेले लड़ना चाहती है, इस पर बहस जारी है। लखनऊ में सपा-बसपा की साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस, तस्वीरों में एक साथ मौजूद आंबेडकर और लोहिया की तस्वीर के बाद दिल्ली दरबार का पूरा विमर्श बदल गया। उत्तर प्रदेश वह प्रयोगशाला है, जहां कांशीराम और मुलायम की लहर में भी गोरखपुर की सीट भाजपा के पास थी। इसके उलट जब बसपा को शून्य पर टिका और सपा को पारिवारिक सदस्यों के बीच सिमटा दिया गया था तब गोरखपुर अलग ही राजनीतिक मोड़ लेता है। 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश ने जो ऐतिहासिक जनादेश दिया था आज उससे उबरने के लिए सपा और बसपा साथ हैं। इस सूबे की राजनीति, केंद्र की भी राजनीति है। लोहिया-आंबेडकर की तस्वीरों को साथ रख इस समीकरण का उद्देश्य है अपने-अपने वोट बैंक को साध ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल करना। केंद्र की राजनीति में सपा-बसपा के अंक मजबूत हों, इसलिए जरूरी है कि कांग्रेस का गणित बिगड़ जाए। संसद में आर्थिक आधार पर दस फीसद आरक्षण पर साथ-साथ चलने के बाद ये दोनों दल अपने-अपने वोट बैंक के पास उसी ‘पहचान’ के साथ लौट आए हैं जो इनकी बुनियाद हैं। बुनियादी विरोधाभासों के साथ वोट बैंक की ऊंची इमारत पर बैठे दोनों दलों की साझीदारी से निकले पाठ पर इस बार का बेबाक बोल।
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खबरदार: कर्नाटक से पीएम मोदी को मिला नया मौका! Khabardar: BJP denies poaching, Kumaraswamy refuses to worry - khabardar AajTakकर्नाटक की जिस जीत ने कांग्रेस को डूबती नैया में तिनके जैसा सहारा दिया था, वो महज सात महीने के अंदर ही फिर से डगमगाता नजर आ रहा है. कर्नाटक में कांग्रसे और जेडीएस गठबंधन की सरकार के जिस मंच से 2019 में नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्षी एकजुटता की तस्वीर देश को दिखाई गई थी, वहां अब सियासी संकट के हालात पैदा हो गए हैं. कर्नाटक से लेकर दिल्ली तक यही चर्चा है कि सरकार टिकेगी या नहीं. दरअसल, मंगलवार को अचानक कर्नाटक की गठबंधन सरकार से दो निर्दलीय बाहर हो गए हैं. उन्होंने समर्थन वापस ले लिया है. ये तब हुआ है जब कर्नाटक में 3 से 5 कांग्रेस के विधायक गायब बताए जा रहे थे और इनके बारे में कहा जा रहा है कि ये मुंबई के एक होटल में हैं. दूसरी तरफ बीजेपी के सभी विधायकों को दिल्ली के नजदीक गुरुग्राम में रखा गया है. बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा जल्द ही अच्छी खबर की भी बात कह रहे हैं. SwetaSinghAT कुछ नहीं होने वाला SwetaSinghAT कोन कहता है की रूपया से हर चीज नहीं खरीदा जा सकता है 😄😄😄😄 SwetaSinghAT ये एंकर अकेले ही काफी है , की trp समाप्त करने के लिए , चाटुकार पत्रकार की चाटूकारिता😂😂
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बदलते दृश्यबदलते जमाने के साथ बहुत कुछ बदल जाता है। समय का चक्र इंसान को बदलने में अहम भूमिका निभाता है, जिसका अहसास समय के साथ-साथ होता रहता है। वक्त के मुताबिक इंसान जिंदगी में अपने रहन-सहन के साथ ही अपने पहनावे और मनोरंजन के साधनों में भी बदलाव देखता आया है। पिछली सदी के साठ या सत्तर के दशक में जिस तरह के मनोरंजन के साधन होते थे, वे आज के मनोरंजन के साधनों से बिल्कुल ही अलग होते जा रहे हैं।
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बेबाक बोल: आनेवाला साल 2019आनेवाला साल 2019 है। नाम में क्या रखा है की तर्ज पर साल में क्या रखा है का भी सवाल किया जा सकता है। लेकिन कैलेंडरी रस्मअदायगी के अपने मायने हैं। भारतीय राज और समाज में आनेवाले नए साल पर तो पांच साल के हिसाब-किताब का बोझ है। पिछले आम चुनाव के बाद 2014 से ही 2019 का नारा गूंजने लगा था। नए साल की दहलीज पर कैलेंडर बदलने के पहले भारतीय राजनीति का कथ्य बदल रहा है। भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व और विकल्प की शुरुआत ही कांग्रेस विरोधी नारे के साथ हुई थी और उत्तर से लेकर दक्षिण तक के क्षेत्रीय दल भाजपा के विजय रथ से घबराए हुए दिख रहे थे। वहीं आज स्टालिन जैसे नेता कांग्रेस अध्यक्ष के जयकारे लगा रहे हैं। ओड़ीशा और पश्चिम बंगाल जैसे क्षेत्रीय दलों की अगुआई वाले राज्यों के लिए अब कांग्रेस नहीं भाजपा की चुनौती है। पिछले साल के दिसंबर से लेकर अलविदा कह रहे इस दिसंबर तक बदले राजकाज पर बेबाक बोल।
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