बिहार लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जेडीयू का सक्सेस रेट बीजेपी से बेहतर रहा है.बिहार के लोकसभा नतीजों से साफ हो गया है कि नीतीश कुमार का वोटबैंक उनके साथ मजबूती से खड़ा है. अति पिछड़ी जातियों और महिलाओं ने उन्हें एक बार फिर जमकर वोट दिया है. वहीं लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी के वादों पर भी काफी हद तक एतबार जताया है.
पूर्णिया ऐसी सीट रही, जहां पप्पू यादव ने अपनी जन अधिकार पार्टी इस उम्मीद के साथ कांग्रेस में विलय कर दी कि उन्हें वहां से टिकट मिल जाएगा. लेकिन बंटवारे में यह सीट आरजेडी के खाते में चली गई. फिर पप्पू यादव ने वहां से बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा. उनका दावा था कि आरजेडी ने उन्हें टिकट देने का वादा किया था, लेकिन बाद में जेडीयू से आईं विधायक बीमा भारती को टिकट दे दिया गया.
राजनीतिक समीक्षक अरुण कुमार चौधरी कहते हैं, ‘‘जिन सीटों पर इस बार इंडिया गठबंधन को जीत मिली है, वहां कुछ न कुछ स्थानीय कारण प्रभावी रहे. जहानाबाद में अरुण कुमार के खड़े हो जाने के कारण वोट बंटा. बक्सर में अश्विनी चौबे का टिकट काटना और बाहरी प्रत्याशी थोपना मंहगा पड़ा. वहीं काराकाट में भोजपुरी अभिनेता पवन सिंह ने लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया. पाटलिपुत्र में रामकृपाल यादव और आरा में केंद्रीय मंत्री आरके सिंह की हार भी जातिगत ध्रुवीकरण के कारण ही हुई.
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