इससे निपटने के लिए 23 साल के प्रभात साहू ने क्रिप्टोग्राफी की मदद से एक ऐसी तकनीक विकसित की जिसकी मदद से पासवर्ड और ओटीपी के बिना भी ट्रांजैक्शन किया जा सकता है.
जो निजी कुंजी बनती है वो डिवाइस में रहता है और जो दूसरी कुंजी है वो सर्वर में सेव होता है. अब जब आप अगली बार ट्रांजैक्शन करते हैं तो फिर ओटीपी की ज़रूरत नहीं पड़ती है. जैसी ही आप ट्रांजैक्शन करते हैं तो प्राइवेट कुंजी सर्वर में सेव दूसरी कुंजी से मिलान करती है और उसके सही होने की पुष्टि करती है. एसएडब्लूओ लैब को सितंबर से लेकर दो दिसंबर के बीच साढ़े पाँच करोड़ का फंड स्टार्टअप एक्ससीड की ओर से मिला है. एक्सफीड ने दो वजहों से इस प्रोजेक्ट को फंड किया है.
हालांकि सूचना सलाहकार और साइबर लॉ के विशेषज्ञ नवी विजयशंकर बीबीसी हिंदी से कहते हैं कि, ``प्राइवेट कुंजी और पब्लिक कुंजी के साथ-साथ तकनीकी क्षमता को लेकर कोई समस्या नहीं होनी चाहिए लेकिन इसमें क़ानूनी कमी है.''विजयशंकर कहते हैं, ``एफआईडीओ प्रोटोकॉल सूचना तकनीक अधिनियम के तहत प्रमाणित नहीं है. एफआईडीओ में क्लाउड आधारित प्रमाणन प्रणाली है जिसमें प्राइवेट और पब्लिक कुंजी बनाई जाती है. प्राइवेट कुंजी कंपनी की ओर से जेनरेट कर के मुझे नहीं दी जा सकती है.
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