बिजली सब्सिडी का फायदा किसे मिल रहा है? | DW | 06.10.2020

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आंकड़े बताते हैं कि भारत में पिछले वित्त वर्ष में 1.10 लाख करोड़ रुपये से अधिक की सब्सिडी बिजली उपभोक्ताओं को दी गई लेकिन सवाल है कि इसका फायदा किसे मिल रहा है? electricity jharkhand

दिल्ली स्थित इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट और अमेरिका स्थित जॉन हापकिंस विश्वविद्यालय से जुड़े इनिशिएटिव फॉर सस्टेनेबल एनर्जी पॉलिसी का ताजा सर्वे कहता है कि जो लोग अपेक्षाकृत अमीर हैं, उन्हें गरीबों के मुकाबले सब्सिडी का दोगुना फायदा मिल रहा है. झारखंड में कराए इस सर्वे के नतीजे बताते हैं अमीरों को सब्सिडी के 60% फायदे मिल रहा है और गरीबों को केवल 25% लाभ मिल रहा है. झारखंड में बिजली सब्सिडी एक रुपये से सवा चार रुपये प्रति किलोवॉट घंटा है.

शर्मा कहती हैं,"झारखंड में जो मॉडल है उसके मुताबिक जो परिवार हर महीने 800 यूनिट बिजली खर्च कर रहा है वह उस परिवार के मुकाबले चार गुना अधिक फायदा बटोर सकता है जिसका खर्च 50 यूनिट से कम है.” इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले शोधकर्ता कहते हैं चूंकि देश के बहुत से राज्यों में बिजली दरें और सब्सिडी का ढांचा झारखंड जैसा ही है, इसलिए इससे व्यापक तस्वीर समझी जा सकती है. जानकार कहते हैं कि स्पष्ट आंकड़ों का अभाव सब्सिडी का ढांचा तय करने की राह में एक बड़ी बाधा है.

देश के तमाम राज्यों ने सब्सिडी के अलग-अलग ब्रैकट तय किए हैं. दिल्ली और पंजाब में 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त है तो हरियाणा में 150 यूनिट बिजली फ्री दी जाती है. झारखंड में भी 200 यूनिट तक बिजली फ्री है और उसके बाद खर्च बढ़ने के साथ सब्सिडी के स्लैब तय किए गए हैं. 800 यूनिट मासिक से अधिक बिजली इस्तेमाल करने वालों को भी 1 रुपये प्रति किलोवॉट-घंटा के हिसाब से सब्सिडी मिल रही है. राज्य में नब्बे प्रतिशत परिवारों का औसत मासिक खर्च 200 यूनिट से अधिक नहीं है.

कृष्णास्वामी के मुताबिक,"जैसे जैसे बिजली की खपत बढ़ती है वैसे वैसे सब्सिडी कम होती जाती है और टैरिफ बढ़ता है. हमने इस बात की गणना की है कि वितरण कंपनियों को हर यूनिट के लिए 6 से 6.50 खर्च करने पड़ते हैं. अब अधिक खपत वाले बहुत सारे उपभोक्ताओं के लिए आप औसत बिजली खर्च की गणना करेंगे तो पाएंगे कि उन्हें बिजली इससे ऊंची दर पर मिल रही है. इसलिए सब्सिडी का फायदा अमीर को जाता है यह लॉजिक हर जगह नहीं चलता.

उधर पावर सेक्टर के जानकार सौरभ कहते हैं कि कई बार डिस्कॉम सब्सिडी के बहाने अपनी अक्षमता और कमियों को छुपाती हैं. आईआईएसडी के ताजा सर्वे का हवाला देते हुए सौरभ कहते हैं कि अगर 79% घरों में मीटर लगा है और केवल 57% लोगों को बिल भेजा जा रहा है, तो"इनएफिशेनसी” को समझा जा सकता है. वह कहते हैं कि अगर बिल ही 60 प्रतिशत से कम लोगों को जा रहा है तो कलेक्शन और भी कम होगा.

 

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रिपोर्ट के बारे में लिखने के लिए धन्यवाद। यदि पाठकों के पास और प्रश्न हैं तो कृपया शोधकर्ताओं से संपर्क करें globalsubsidies MichaelAklin sais_isep

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