नई दिल्ली: 102 लोकसभा सीटों पर शुक्रवार को हुई वोटिंग के बाद कम वोटिंग ट्रेंड को लेकर काफी चर्चा है। जानकारों के अनुसार अभी इस वोटिंग से कोई ठोस ट्रेंड निकालना कठिन है। साथ ही इससे ओवरऑल वोटिंग का ट्रेंड भांपना भी सही नहीं है। हालांकि जिस तरह पहले चरण में अपेक्षाकृत कम वोट पड़े हैं उससे सभी दलों का गणित बिगड़ गया है। कम वोटिंग से किसे लाभ या किसे नुकसान होगा, इसे जानने की कोशिश की जा रही है। शुक्रवार को हुई वोटिंग में लगभग 63% वोट पड़े जबकि इन्हीं सीटों पर 2019 के आम चुनाव में कुल 66.
44% वोटिंग हुई थी।पहले राउंड में कम वोटिंग के बाद सभी दल अपने बूथ मैनेजमेंट में व्यस्त हो गए। जानकारों के अनुसार नजदीकी मुकाबले में जो राजनीतिक दल अपने-अपने वोटरों को बूथ तक भेजने में सफल रहेंगे, वे अधिक लाभ में रहेंगे। अब तक आए आंकड़े के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में वोटिंग कम हुई। खासकर तमिलनाडु के शहरों में। बीजेपी का तर्क है कि उसके वोटर बेहद उत्साह से निकल रहे हैं। विपक्षी दलों का भी ऐसा ही दावा है। इन दावों के बीच इनकी चिंताएं भी हैं। सामान्य तौर पर बहुत अधिक वोटिंग होने से ऐसा संदेश जाता है...
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