इसके बजाय अगर सदनों का कामकाज लगातार ऐसे मुद्दों पर बाधित या हंगामे का शिकार होता रहे कि जिसमें न विपक्ष सरकार से कुछ ठोस तरीके से पूछ पाए और न सरकार इसका उत्तर दे पाए, तो सवाल उठना लाजिमी है! सोमवार को एक बार फिर जिस तरह संसद के मौजूदा सत्र में जैसा हंगामा देखने में आया, उसकी वजह से दोनों सदनों को स्थगित करने की नौबत आई। विपक्ष जहां कृषि कानूनों के विरोध और पेगासस के संदर्भ में निशाने पर रखे गए लोगों की जासूसी और अन्य मुद्दों पर सरकार का विरोध जता रहा था, वहीं सरकार की इन मसलों पर अपनी राय है।...
देना चाहिए और कृषि कानूनों पर किसानों को आश्वस्त करने लिए सरकार की ओर से पहलकदमी की मांग करनी चाहिए। इसके बजाय सदन को बाधित करने से किस मसले का हल निकल जाएगा? जबकि सदन इसीलिए है कि वहां व्यापक जनहित से जुड़े मुद्दों को रखा जाए, उन पर विचार किया जाए और उनका दीर्घकालिक समाधान निकाला जाए। जनता अपने जनप्रतिनिधियों को इसीलिए वहां भेजती है। विडंबना यह है कि अब न केवल देश की संसद में, बल्कि राज्यों के सदनों में भी जनहित से जुड़े मुद्दों पर विचार-विमर्श कम और सरकार के समर्थन और विरोध में टकराव और हंगामा...
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