जब सत्ता यह तय करती है कि जनता क्या सुन सकती है, क्या गा सकती है, तब संगीत और संगीतकारों को अपना रास्ता बदलना पड़ता है या ख़त्म हो जाना पड़ता है.के शाम चौरासी घराने के नाम के पीछे एक दिलचस्प कहानी है. पिछली सदी के शुरुआती वर्षों में अविभाजित पंजाब के एक गायक को उसके आश्रयदाता राजा ने इनाम के तौर पर चौरासी गांवों के महसूल से नवाज़ा था.
घरानों के नाम अक्सर किसी जगह के नाम पर रखे जाते हैं. अपने संस्थापक के नाम पर किसी घराने के नामकरण की मिसालें न के बराबर हैं . मिसाल के तौर पर अगर जयपुर घराने को लें, तो बड़ी संख्या में इस शैली के गायक आज मुंबई, पुणे, कोल्हापुर, और महाराष्ट्र के दूसरे स्थानों में फैले हुए हैं.उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा कस्बा हैयहां यह उल्लेखनीय है कि जगह बदलने के साथ स्थानीय संगीत और भाषाई विशेषताओं के प्रभाव से गायकी की शैली भी कई मायनों में बदलती है.
इनकी ठुमरी सुन कर मैं इस सोच में पड़ गई कि सितारा देवी जैसी जिन गायकों को मैंने ठुमरी गाते सुना था, उनकी ठुमरी से ये कितनी अलग थी. निश्चित तौर पर एक स्तर पर यह फर्क ठुमरी के अंग/घराने का था. मिसाल के लिए पाकिस्तान में ‘लोक’ परंपरा को पुनर्जीवित करने और उन्हें सम्मान देने पर ज़ोर रहा है. इसने पठाने खान और रेशमा जैसे कई शानदार गायकों की खोज की और उनकी परंपरा में कई अन्य समकालीन कलाकारों की एक पूरी पीढ़ी तैयार की है.
क्या यह कहा जा सकता है कि ख़्याल की तुलना में ग़ज़ल जैसे रूपों को ज़्यादा जगह दिए जाने के कारण इस विधा के पाकिस्तानी गायकों ने अपनी ग़ज़ल गायकी को ऐसे तत्वों से सजाना शुरू कर दिया, जो पहले इसमें नहीं पाए जाते थे?इससे यह गायकी मुशायरे की साधारण तरन्नुम शैली और तवायफों की ठुमरी-अंग उतार-चढ़ाव की शैली की जगह एक नई विकसित शैली में ढल गई, जिसने अपने भीतर शास्त्रीय/ख़्याल गायकी के तत्वों को शामिल किया और संगीत की एक ऐसी स्वीकार्य परंपरा की ज़रूरत को रेखांकित किया जो ‘क्लासिकल’ के तत्वों को बनाए रखते हुए भी...
इस तरह ताल के आवर्तन की रफ्तार घटा दी गई और इसके विस्तार में ख़्याल से मिलते-जुलते तत्व को जोड़ा गया, जिसने इसे ज़्यादा व्यापक, मधुर, कम तेज़ और जिंदादिल प्रस्तुति का रूप दिया. कोक स्टूडियो की शैली का निर्माण एक तरह से फनकारों का अपने संगीत की प्रस्तुति के रास्ते में आने वाली रुकावटों को दूर करने की एक कोशिश जैसी है, जिसने एक पॉपुलर स्टाइल के लिए श्रोताओं के एक अलग ही वर्ग का निर्माण किया है, जो इस स्टाइल के अलग-अलग टुकड़ों के श्रोताओं से काफी अलग है.
कौन हैं यह लिखनेवाला ? उसकी अक़्लक दिवाला पिट गया हैं ! मूलतः उसको मालूम नही इस्लाममे संगीतको कोई स्थान नही ! सूफी संगीत अलग हैं ! शास्त्रीय संगीतकी बात हैं तो अकबर सब कलाओकेलिये उदार था .उसका दरबारी गायक कौन था ? ' तानसेन ' उसके गुरू कौन थे ? ' सामवेद ' क्या हे ? --2
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