बंगाल परिणाम: टीएमसी की जीत नहीं, उन दो नेताओं की हार महत्त्वपूर्ण है

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‘महाराजा तोमारे शेलाम!’, 2 मई की सुबह बंगाल की वर्तमान मुख्यमंत्री ने ट्वीट किया. यह सत्यजित राय के जन्मशती वर्ष में उनके जन्मदिन पर ममता बनर्जी का उनको अभिवादन था. इससे उनके उस आत्मविश्वास का पता चलता था, जिसके कारण रात होते-होते मालूम हुआ कि ममता के ज़ख़्मी पांवों ने भाजपा की गेंद को लंबी किक लगा दी है.

उसके साथ ही यह कहना ही होगा कि बंगाल के समाज के सामूहिक विवेक ने भी उस खतरे को पहचाना जिसका नाम भाजपा है. यह जीत इसीलिए बंगाल में छिछोरेपन, लफंगेपन, गुंडागर्दी, उग्र और हिंसक बहुसंख्यकवाद की हार भी है. ममता सिर्फ भाजपा से नहीं लड़ रही थीं. वे खुलकर भाजपा की जीत के लिए उसके पक्ष में रास्ता हमवार बनाने में जुटे चुनाव आयोग की ताकत से भी लड़ रही थीं.

अगर बंगाल का उच्च न्यायालय भी उसके बारे में वही टिप्पणी करे जो मद्रास उच्च न्यायालय ने की है, यानी उस पर लोगों की मौत के लिए मुकदमा चलना चाहिए तो क्या वह गलत होगा? तृणमूल कांग्रेस की जीत और भाजपा की हार अहंकारी हिंदी राष्ट्रवाद की हार भी है. टेलीग्राफ अखबार ने ठीक ही नोट किया कि भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं ने बिना अनुवादक के हिंदी में ही बोलने की जो ठसक दिखलाई, उसने भी बंगाल के लोगों को विरक्त किया.

जाहिर तौर पर वे जिस हिंदी से बांग्ला का ऊर्जा देना चाहते थे, वह भिन्न थी. उसका आधार मानवीय प्रेम था और उसमें थी एक प्रकार की ब्रह्मांडीय चेतना की आकांक्षा. आश्चर्य नहीं कि हजारी प्रसाद द्विवेदी जैसे हिंदी के उद्भट आचार्य को भी शांतिनिकेतन में दूसरे जन्म का एहसास हुआ. यह लेकिन तृणमूल कांग्रेस, खासकर ममता बनर्जी की जीत भी है. एक नितांत असमान युद्ध में अपने आप पर विश्वास रखते हुए वे अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं का हौसला भी बनाए रख सकीं.जब एक-एक कर उनके पुराने नेताओं को तोड़ लिया गया, उन्होंने नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का ऐलान करके पार्टी में जोश भर दिया. जब सारे लोग कह रहे थे कि भाजपा ने ध्रुवीकरण कर दिया है, ममता इस यकीन पर टिकी रहीं कि ध्रुवीकरण अवश्य होगा लेकिन हिंदू- मुसलमान का नहीं, धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता के बीच.

भाजपा के एक सांसद ने चुनाव नतीजे एक बाद गैर बंगाली हिंदुओं को डराने की दयनीय कोशिश की. उन्होंने इस चुनाव नतीजे को धर्मनिरपेक्ष जनमत पर अल्पसंख्यक वीटो कहकर उन हिंदुओं को दुत्कारा, जिन्होंने तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया. केरल और तमिलनाडु ने भी इस विस्तारवाद की पराजय हुई है और यह भारत के लिए शुभ है. मित्र कुमार राणा ने कहा कि अब हम यह समझ गए हैं कि हम क्षणों में ही अपना जीवन जीते हैं. कोई अंतिम स्थायी काल नहीं है.

 

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