एनआरसी के पूर्व असम कोऑर्डिनेटर प्रतीक हजेला
चंदन नागरिकता की लड़ाई को अपने 'नागरिक अधिकार' का इस्तेमाल करते हुए ही लड़ रहे हैं. हालांकि बीते एक साल में नागरिकता का दुख इस राज्य में कई करवट बदल चुका है. ऐसी स्थिति में एनआरसी लिस्ट में नाम न आने के कारण घनघोर मानसिक पीड़ा, आर्थिक बोझ और भविष्य को लेकर गहरी अनिश्चिता में डूबे असम के 19 लाख लोगों के दुखों की ज़िम्मेदारी भी सरकार और अदालत पर होगी. यहां यह भी भूलना नहीं चाहिए कि एनआरसी में नाम न आने के तनाव की वजह से दर्जन भर से लोग तथाकथित तौर पर ख़ुद अपनी जान लेने को मजबूर हो गए थे.
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के पास लम्बित पड़े मुक़दमा क्रमांक 562/2012 - असम सम्मिलिता महासंघ बनाम भारत संघ- का ज़िक्र करते हुए अभिजीत जोड़ते हैं,"इस मुक़दमे में असम में नागरिकता की कट-ऑफ़ डेट मार्च 1971 से बदलकर पूरे भारत की तरह 1951 करने की अपील की जा रही हैं. अगर नतीजे में ऐसा हो जाता है तो एनआरसी की वर्तमान प्रक्रिया पूरी व्यर्थ साबित हो जाएगी. इसलिए अदालत से हमने इस एनआरसी के सौ प्रतिशत रीवेरिफ़िकेशन की मांग की है.
हालांकि प्रतीक हजेला पर मौजूद काम के बोझ को अभूतपूर्व बताते हुए वह जोड़ते भी हैं,"यह सच है कि प्रतीक हजेला पर आर्थिक भ्रष्टाचार और विवादित तरह से एनआरसी की प्रक्रिया पूरी करवाने के कई आरोप लग रहे हैं. लेकिन यह सिर्फ़ आरोप हैं जिन्हें अदालत में साबित होना अभी बाक़ी है. लेकिन इसके लिए एक एफ़आइआर ही काफ़ी है.
असम के बाक़ी मुसलमानों से ख़ुद को दूर बताते हुए मोईनुल कहते हैं,"हमें हमेशा बांग्लादेशी मुसलमानों के साथ मिला कर देखा जाता है जबकि हम उनमें से नहीं हैं. हम असम की मिट्टी के लोग हैं. सिर्फ़ इसलिए कि वह मुसलमान है, बांग्लादेशी मुसलमान हमारा भाई नहीं हो जाएगा...हमारे भाई असम के मूल निवासी हैं. हम पहले असमिया हैं बाद में भारतीय".
सम्पादक का कर्तव्य है जो भी न्यूज हो राष्ट्र हित मे हो राष्ट्र हित का अर्थ जो राष्ट्र के समुदायों के बीच प्रेम बढाये कोई आपसी सामंजस्य विरोधी सत्य ऐसा जो दिखाना जरूरी है तो उसमें फिर पूरा सत्य होना चाहिए जैसे था वैसा ही सही गलत का आंकलन जनता का आप उसमें एडिटिंग न करें
Right decision......AB EK NEW EMERGENCY STATEWIDE EXPECTED AND ANTICIPATED HAI......POLARISATION...AT ITS PEAK
Anti India media
गुनाहगार तो रंग्गा बिल्ला ही हैं
अब ये प्रतीक हजेला कौन है बे?
वाह बीबीसी.. कभी ये भी बता दो पाकिस्तानी बौद्ध को जानबूझकर एनआरसी का नायक बनाया जा रहा है।
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