सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि आम लोगों के बीच अपनी ‘पहुंच, प्रभाव’ आदि को देखते हुए प्रभावशाली लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इस्तेमाल करते हुए अधिक जिम्मेदार होना चाहिए.
न्यायालय ने कहा कि बहुलतावाद के लिए प्रतिबद्ध राजनीति में, घृणा फैलाने वाला भाषण लोकतंत्र में किसी भी वैध तरीके से योगदान नहीं कर सकता और वास्तव में यह समानता के अधिकार को खारिज करता है. पीठ ने कहा कि अनुभव और ज्ञान के साथ, ऐसे लोगों से बेहतर स्तर के संचार कौशल की उम्मीद होती है. यह कहना उचित है कि वे अपने शब्दों का उपयोग करने में सावधान रहेंगे.के अनुसार, हालांकि पीठ ने कहा कि उसका यह मत नहीं है कि पत्रकारों जैसे प्रभावशाली लोगों को अन्य नागरिकों जैसे ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं हासिल है.
कोर्ट ने कहा, ‘कई बार इस तरह की चर्चा और बहस विभिन्न दृष्टिकोणों को समझने में मदद करती हैं और अंतर को पाटती हैं. प्राथमिक तौर पर सवाल इरादे और उद्देश्य का है.’ एक समाचार चैनल पर ‘आर पार’ नामक शो में 15 जून को सूफी संत के लिए आपत्तिजनक शब्द का इस्तेमाल करने के मामले में देवगन के खिलाफ राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना में कई प्राथमिकियां दर्ज की गई हैं.
पीठ ने कहा, ‘आपत्तिजनक अंश सहित लिपि ‘सामग्री’ का हिस्सा है लेकिन इसके आकलन के लिए इसकी जांच और विभिन्न संदर्भ और इसकी मंशा पर विचार करने की जरूरत होगी. अदालत द्वारा इसे लेकर मामला बनने के बारे में कोई राय बनाने से पहले इनका आकलन करना होगा. आकलन का निर्णय तथ्यों पर आधारित होगा जिसके लिए पुलिस जांच की आवश्यकता होगी.’
नैसर्गिक अधिकार है - जय महाकाली
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