पुरस्कार वापसी का चौतरफा दबाव

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म्‍यमां में रोहिंग्या मुसलमानों के रूप में वहां की अल्पसंख्यक आबादी के खिलाफ हुई हिंसा रोकने में असफल रहीं आंग सान सू की पर एक समय यह दबाव काफी गहरा गया था कि उन्हें नैतिक तौर पर नोबेल शांति पुरस्कार लौटा देना चाहिए।

यही नहीं, पूरी दुनिया में यह अभियान भी अलग से चला कि नोबेल फाउंडेशन को उनसे खुद यह पुरस्कार वापस करने के लिए कहना चाहिए। अलबत्ता तमाम दबावों के बीच नोबेल फाउंडेशन ने आगे बढ़कर कहा कि सू की से पुरस्कार वापस नहीं लिया जा सकता। संस्थान ने इसके लिए दलील दी कि न तो नोबेल पुरस्कार के संस्थापक अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत और न ही नोबेल फाउंडेशन के नियमों के आधार पर सू की से पुरस्कार वापस लिया जा सकता है। यह भी कहा गया कि स्टॉकहोम या ओस्लो में पुरस्कार वितरण संबंधी किसी भी समिति ने पहले कभी किसी से पुरस्कार...

जाहिर है कि असफलता और अलोकप्रियता के भारी संकट के बीच सू की के लिए नोबेल मान का बचना एक बड़ी राहत की बात रही। रोहिंग्या उत्पीड़न के सवाल पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सू की पर किस तरह का दबाव था, यह इस बात से जाहिर होता है कि नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित दक्षिण अफ्रीका के पूर्व आर्चबिशप डेसमंड टूटू तक ने सू की से रोहिंग्या मुसलमानों का उत्पीड़न रोकने के लिए दखल देने की अपील की थी। अपने खुले पत्र में टूटू ने कहा था कि सच्चाई का प्रतीक माने गए व्यक्ति का ऐसे किसी देश का नेतृत्व करना ठीक नहीं है, जहां...

 

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