पीरियड्स के दौरान मंदिर नहीं जाना! | DW | 18.10.2018

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कहते हैं कि बच्चे भगवान की देन होते हैं. और ये तभी होते हैं जब महिलाओं को पीरियड्स होते हैं. इस तर्क से तो पीरियड्स भी भगवान की ही देन हुए. तो फिर पीरियड्स में मंदिर क्यों नहीं जाना चाहिए? periods Taboo India

मैं 11 साल की थी जब पहली बार अपने कपड़ों पर खून का दाग देखा. स्कूल में दूसरी लड़कियों से पीरियड्स के बारे में सुन चुकी थी, इसलिए अंदाजा था कि क्या हो रहा है. लेकिन घबराहट फिर भी थी. उंगली कटने पर खून देख कर घबराहट होने लगती है, तो यह तो फिर काफी बड़ी बात थी. हर लड़की की तरह मैंने भी सबसे पहले जा कर अपनी मां को इस बारे में बताया. मां ने एक पुराना सा कपड़ा हाथ में थमा दिया और कहा,"तारीख याद रखना और मंदिर मत जाना.

बहुत से लोगों ने यह भी कहा कि अगर बड़े बुजुर्ग कोई नियम बना गए हैं, तो किसी वजह से ही बनाया होगा. यह बात मुझे तार्किक लगी. जिस जमाने में ऐसे नियम बने होंगे कि औरत जमीन पर सोए, अलग कमरे में रहे, किसी भी"पवित्र" चीज को ना छुए, एक बार उस जमाने की तस्वीर उकेरने की कोशिश करते हैं. सोचिए आप एक ऐसे वक्त में रह रहे हों, जब ना बिजली हो, ना साफ सफाई की कोई सुविधा. नहाने के लिए नदी-तालाब में जाना पड़ता हो और शैंपू-साबुन को तो बिलकुल भूल ही जाइए. सैनिटरी पैड्स की भी तब तक खोज नहीं हुई थी.

 

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Fact🤔🤔🤔🤔

अगर आप बीमार पड़ेंगे तो मंदिर में जाना पसंद करेंगे या अस्पताल में आपही से सवाल है ।

सनातन धर्म में पूजा की तमाम पद्धतियाँ प्रचलन में हैं।इनमें कहीं जिस बात की वर्जना है वहीं दूसरी जगह इसकी उपासना भी है। सबरीमाल में रजस्वला का प्रवेश वर्जित है तो वहीं गुवाहाटी के कामाख्या मंदिर में माँ के इसी स्वरूप की पूजा होती है। इसलिए आप को रिपोर्ट एकपक्षीय नहीं लिखनी चाहिए

क्यों 6 फिट की दूरी क्यों बांधते हैं मुख पर कपङा ,समय की आवश्यकता है मल मुत्र से सना हुआ व्यक्ति अपवित्र होता है , ...उन तीन दिनों में लगातार रक्तस्राव होता रहता है इसलिए अपवित्र माना गया जब ग्रंथ लिखे गये जब नीयम बनाये गये तब साबुन भी उपलब्ध नहीं था इसलिए दूर रखना ही उचित समझा

मूर्ख लोगों से भरा हुआ है ये देश ऐसे लोग कभी नही समझेंगे इनको ना जाने किस किस चीज़ से तकलीफ़ है

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