उत्तर प्रदेश को यों ही ‘प्रधानमंत्रियों का प्रदेश’ नहीं कहा जाता. अब तक इसके रिकाॅर्ड नौ सांसद प्रधानमंत्री बनकर देश की बागडोर संभाल चुके हैं. इनमें से चार-पं. जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी- कांग्रेसी रहे हैं तो पांच गैर-कांग्रेसी — चौधरी चरण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी.
बात को यों भी कह सकते हैं कि नेहरू की कांग्रेस इस सीट पर उनकी विरासत को उनके निधन के बाद पांच साल भी नहीं संजो पाई. 1964 और 1967 में उनकी जगह उनकी बहन विजयालक्ष्मी पंडित जीतीं भी तो दो साल बाद ही संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधि बनने के लिए इस्तीफा दे गईं. इस तरह इस सीट का नेहरू परिवार से नाता टूटा तो छात्र आंदोलन से निकलकर आए संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के युवा नेता जनेश्वर मिश्र ने नेहरू के सहयोगी केशवदेव मालवीय को शिकस्त देकर उपचुनाव में ही कांग्रेस का यह गढ़ ढहा दिया.
शास्त्री की विरासत भी वह उनके जाने के बाद के महज दो चुनावों तक ही बचा पाई. 1967 में उसके प्रत्याशी हरिकृष्ण शास्त्री चुने गए और 1971 में हेमवतीनंदन बहुगुणा. 1977 में जनता पार्टी के जनेश्वर मिश्र ने उसकी जीत का सिलसिला तोड़ा तो 1980 में विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा फिर जोड़े जाने के बावजूद अमिताभ के इस्तीफा देते ही फिर टूट गया.
अलबत्ता, इसके चुनावी आंकड़े अभी भी कांग्रेस के पक्ष में ही हैं. अब तक सर्वाधिक 17 बार वही जीती है, जबकि भाजपा दो व जनता पार्टी सिर्फ एक बार 1977 में.
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