नीदरलैंड्स की तरह माफी, क्या कभी ब्रिटेन भी मांगेगा | DW | 18.02.2022

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नीदरलैंड्स के प्रधानमंत्री मार्क रुटे ने युद्ध अपराधों के लिए इंडोनेशिया से माफी मांगी है. क्षमा इंडोनेशिया के स्वतंत्रता आंदोलन को बर्बरता से कुचलने के लिए मांगी है.

इंडोनेशिया 17वीं शताब्दी से लेकर 1949 तक नीदरलैंड्स के अधीन रहा. लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान नीदरलैंड्स खुद जर्मनी के नियंत्रण में आ गया. ऐसे में हजारों किलोमीटर दूर इंडोनेशिया को कंट्रोल में रखना उसके लिए मुश्किल होने लगा. जापान ने इस स्थिति का फायदा उठाया और इंडोनेशिया में आजादी के आंदोलन को हवा देनी शुरू की. 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिका के परमाणु हमले के बाद एशिया में दूसरा विश्वयुद्ध खत्म हो गया. जापान के राजा ने आत्मसमर्पण कर दिया.

अनुमानों के मुताबिक इस संघर्ष में 45 हजार से लेकर एक लाख स्वतंत्रता सेनानियों की मौत हुई. मरने वाले आम लोगों की संख्या 25 हजार से एक लाख तक आंकी जाती हैं. 1949 में इंडोनेशिया के आजाद होने के बाद भी नीदरलैंड्स में यही आम धारणा रही कि फौज सिर्फ छिटपुट संघर्ष में शामिल रही और सैन्य कार्रवाइयों का मकसद सिर्फ उपनिवेश पर नियंत्रण बनाए रखना था.अब नीदरलैंड्स में इतिहास पर काम करने वाले तीन रिसर्च इंस्टीट्यूटों के शोध ने इस धारणा को तोड़ा है.

डच सेना का हिस्सा रहे चुके एक भूतपूर्व फौजी ने 1969 में पहली बार इन युद्ध अपराधों का खुलासा किया. उस खुलासे के दशकों बाद भी नीदरलैंड्स की सरकारें लगातार युद्ध अपराध के आरोपों से इनकार करती रहीं. सरकारों ने हमेशा यही तर्क दिए कि हमले गिने चुने थे और पूरी तस्वीर को देखें तो सेना का व्यवहार सही था. शोध साफ कहता है कि यह धारणा बिल्कुल गलत है.नीदरलैंड्स के प्रधानमंत्री रुटे ने सिर्फ अतीत की बर्बरता के लिए ही माफी नहीं मांगी, बल्कि अब तक डच सरकार द्वारा इन तथ्यों को स्वीकार न करने के लिए क्षमा मांगी.

 

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