. जोशी के निधन से सहारनपुर के रंगमंच का बडा स्तम्भ ढह गया है.
हर भूमिका में अपना सौ फीसदी झोंक कर उस भूमिका को सजीव बना देने वाले जोशी को उनकी अभिनय क्षमता के बल पर ही वर्ष 1971 में बीस बरस की उम्र में आई टी सी ने नौकरी की पेशकश की ,जिसे विजेश जोशी ने स्वीकारा किन्तु पढाई जारी रखी . विजेश जोशी और के के सिन्हा की गलबहियां रंग लायी और नाटय संस्था की स्थापना हुई . सिन्हा का काम करने का अपना तरीका था उनकी सोच थी कि रंगमंच मौज मस्ती या दिल बहलाव या अपनी आत्म संस्तुष्टि भर के नही, रंगमंच समाज के लिए समाज को सुशिक्षित करने के लिए करना है. इस सोच के तहत स्कूल, कालेज, व्यापार, चिकित्सा, और सरकारी नौकरी से जुडे ऐसे लोगों को ढूंढा गया जिनकी रंगमंच में रुचि थी.
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