सरकार ने तथ्यों को उजागर करने की हिम्मत नहीं जुटाई। कई पूर्व सेनाधिकारियों, नौकरशाहों और विदेशी विशेषज्ञों के अध्ययन की, कुछ अपवादों को छोड़, गंभीर सीमाएं रही हैं। अवकाशप्राप्त अधिकारी गोपनीयता कानून का उल्लंघन कर नहीं सकते और विदेशियों के पास आवश्यक जानकारी हो नहीं सकती। अनेक किताबें पूर्व निर्धारित निष्कर्षों पर पहुंचने के लिए लिखी गईं। मिथकों, भ्रांतियों और राजनीतिक दृष्टि से सुविधाजनक 'तथ्यों' को सच बताया जाता रहा। इस चीकट पर्दे को उतार फेंकने के लिए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने अब...
1962 का पूरा सच शायद ही कभी सामने आ पाए। हास्यास्पद सच यह है कि जगजाहिर बातों पर भी हम कुंडली मारे बैठे हुए हैं। अत्यंत विवादित है हेंडरसन ब्रुक्स रिपोर्ट। 1962 में हार के कारणों की गहराई तक पहुंचने के लिए भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल हेंडरसन ब्रुक्स को जिम्मेदारी सौंपी गई थी। नई दिल्ली में टाइम्स, लंदन के संवाददाता नेविल मैक्सवेल ने ब्रुक्स रिपोर्ट पर आधारित विस्तृत किताब लिख डाली। अब उसमें गोपनीय कुछ भी नहीं बचा। बीएम कौल, जेपी दलवी, एनएन भाटिया और डीके पलित जैसे पूर्व सेनाधिकारियों ने...
भारत में सरकार किसी पार्टी या मोर्चे की हो, कोई भी जिम्मेदार प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री अवर्गीकरण में एक हद से आगे नहीं जा पाएगा। इस प्रश्न का सटीक उत्तर मिलना मुश्किल है कि चीन की खतरनाक राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं से प्रेरित विस्तारवाद के कारण भारत से रिश्ते खराब हुए या कुछ और भी था? नेहरू सरकार ने बफर के खात्मे को स्वीकार भी कर लिया था। फिर क्या तिब्बत की वजह से ही टकराव की नौबत आई? दलाई लामा को राजनीतिक शरण देने से एक बार इन्कार करने के बाद नेहरू ने निर्णय क्यों बदला? ल्हासा से भारतीय सीमा...
प्रचारित सत्य यह है कि प्रधानमंत्री नेहरू ने गवर्नर जनरल माउंटबेटन के दबाव में युद्धविराम करवा दिया। कमेटी को सच की पड़ताल करनी होगी। सच यह तो नहीं कि रावलपिंडी मार्ग पर आगे बढ़ते हुए मुजफ्फराबाद पर कब्जा और स्कार्दू-हुंजा की मुक्ति के लिए जरूरी सैन्य बल उस समय उपलब्ध ही नहीं था? एक बात यह भी कि स्थायी सैन्य अभियान जनसमर्थन के बगैर मुमकिन नहीं होता और आज के गुलाम कश्मीर में शेख अब्दुल्ला का प्रभाव नहीं...
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