में ही खो जाएगा। लेकिन भाला फेंक प्रतियोगिता के स्वर्ण विजेता नीरज चोपड़ा ने हिंदी को लेकर एक चमकदार बात भी कही है। उन्होंने हिंदी के लिए जो गर्व बोध दिखाया है, उसकी ओर भी हिंदीभाषियों का ध्यान जरूर जाना चाहिए। हम आजादी के पचहत्तरवें साल में प्रवेश कर चुके हैं। अव्वल तो इतने बरसों में हमारा भावपक्ष इस हद तक भारतीय हो जाना चाहिए था कि सार्वजनिक स्थानों पर अपनी भाषाएं बोलने में हमें कोई हिचक या शर्म नहीं हो। लेकिन दुर्भाग्यवश अब तक ऐसा नहीं हो पाया...
नीरज के इस हिंदी प्रेम की तब चर्चा नहीं हुई थी। वैसे भी बड़ी सफलता का टैग आपके पीछे न लगा हो, तो आप पर दुनिया का ध्यान नहीं जाता। पर अब नीरज की दुनिया बदल चुकी है। अब नीरज खुद भारतीय खेल जगत के सुनहरे सितारे बन गए हैं। इसलिए उनकी हर बात अब गौर से सुनी जाएगी। हिंदी की रोटी खाने के बावजूद भारतीय मीडिया के एक वर्ग को हिंदी की दुनिया डाउनमार्केट लगती है। चूंकि नीरज अब अपमार्केट हैं, इसलिए उनके विचार भी अपमार्केट जैसा प्रभाव डालेंगे। शायद यही वजह है कि उनसे उस वाकये के बारे में पूछा भी जा रहा है।...
में ही खो जाएगा। लेकिन भाला फेंक प्रतियोगिता के स्वर्ण विजेता नीरज चोपड़ा ने हिंदी को लेकर एक चमकदार बात भी कही है। उन्होंने हिंदी के लिए जो गर्व बोध दिखाया है, उसकी ओर भी हिंदीभाषियों का ध्यान जरूर जाना चाहिए। हम आजादी के पचहत्तरवें साल में प्रवेश कर चुके हैं। अव्वल तो इतने बरसों में हमारा भावपक्ष इस हद तक भारतीय हो जाना चाहिए था कि सार्वजनिक स्थानों पर अपनी भाषाएं बोलने में हमें कोई हिचक या शर्म नहीं हो। लेकिन दुर्भाग्यवश अब तक ऐसा नहीं हो पाया है।अंग्रेजी का असर इतना है कि भारत भूमि में बड़ी...
हिंदी हमारी मात्र भाषा है और हमे इसको बोलने से बिलकुल भी कतराना नही चाहिए ।जय हिंद
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