भारत और ईरान के बीच चाबहार बंदरगाह की देखभाल, विकास और संचालन को लेकर सोमवार को हुआ समझौता न सिर्फ दोनों देशों के आपसी संबंधों के लिहाज से अहम है बल्कि आने वाले वर्षों में इस पूरे क्षेत्र की भू-राजनीति को भी निर्णायक ढंग से प्रभावित कर सकता है।आठ साल का इंतजार : इस समझौते के प्रयास काफी पहले से चल रहे थे। चाबहार को लेकर दोनों देशों में पहला समझौता 2016 में हुआ। 2018 में तत्कालीन ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी की भारत यात्रा के दौरान इस पोर्ट पर भारत की भूमिका बढ़ाने का मसला प्रमुखता से उठा। बाद...
चाबहार बंदरगाह उन देशों के लिए बेहतर विकल्प हो सकता है। अब इस संभावना को ठोस रूप देना आसान होगा।टाइमिंग का सवाल : समझौते की टाइमिंग भी इसे संवेदनशील बना रही थी। पश्चिम एशिया संकट के दौरान ईरान और इस्राइल के बीच बढ़े तनाव के मद्देनजर अमेरिका ने ईरान पर नए सिरे से आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं। ऐसे में भारत के लिए सभी संबंधित पक्षों को विश्वास में लेते हुए ईरान के साथ एक दीर्घकालिक समझौते को अंतिम रूप देना चुनौतीपूर्ण था।अमेरिकी प्रतिक्रिया : समझौते की घोषणा के बाद अमेरिका ने हालांकि यह कहते हुए...
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