सवाल यह है कि जो हम कहना चाहते हैं, क्या वह ठीक उसी तरह से कह पाते हैं जिस तरह कहना चाह रहे थे! कहीं ऐसा तो नहीं कि कह देने के बाद ऐसा लगता हो कि हम इसे ठीक उस तरह नहीं कर पाए, जिस तरह कहना चाह रहे थे। यह ‘मिसिंग लिंक’ यानी विस्मृत या छूटी कड़ियां हमें परेशान करती हैं। कुछ लिखे हुए को अंतिम रूप देने के पहले लोग उसे कई बार लिखते, काटते और फाड़ते हैं। यहांं तक कि प्रेम पत्र जैसे नाजुक मसलों का मजमून भी कई दफा फाड़ा और फेंका जाता है और बमुश्किल अंतिम रूप ले पाता है। यानी अनुभूति की अभिव्यक्ति का...
सौंदर्यबोध हो, अर्थपूर्ण और भावपूर्ण हों और ऐसे हों कि उन्हें उनके जैसे शब्दों से बदला न जा सके। ठीक ही कहा जाता है कि किसी बात को कहने का एक ही तरीका होता है और एक शायद ही उस बात को ठीक से कह सकता है। इसी से हर शब्द की अपनी अहमियत पता चलती है। अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि थॉमस ग्रे ने कुल जमा छह कविताएंं लिखीं, जिनमें से सिर्फ तीन को ही लोग याद करते हैं और उनमें से भी एक केवल ‘एलिजी’ ही उनकी सबसे प्रसिद्ध कविता है। कहते हैं उन्होंने इसे कई बार लिखा और कई शब्द बार-बार बदले तब जाकर उन्होंने इसे...
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