राजेंद्र वामन काटदरे साहिर लुधियानवी के लिखे गीत के मुताबिक, ‘यहां तो हर चीज बिकती है. सुनो जी तुम क्या-क्या.
बाबूजी तुम क्या-क्या खरीदोगे!’ जी हां, फल-फूल, भाजी-तरकारी, दूध, किराना, कपड़ा, किताबें तो रोजमर्रा की बात हैं, लेकिन वार-त्योहार पर सोना-चांदी, जड़-जवाहरात, गाड़ी और कर्ज लेकर जमीन, फ्लैट, बंगला आदि सब कुछ खरीदा जा सकता है, बस आपके पास रुपए होने चाहिए। आपकी जेब गरम होनी चाहिए और सच यह है कि यहां ईमान भी बिकता है। खंभों और तारों से होते हुए आपके घर आने वाली बिजली और नल से आने वाला पानी आप सरकार से खरीदते ही हैं। प्यासे को पानी पिलाना किसी जमाने में पुण्य का काम रहा होगा। आजकल सरकारी रेल में भी...
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