वर्ष 1970 में भारत के दवा बाजार का दो तिहाई हिस्सा बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों के हाथ में था। बाद में भारत ने प्रोडक्ट पेटेंट को निरस्त कर दिया। परिणामस्वरूप पेटेंट की गई दवाओं को अन्य तकनीक से उत्पादन करने की भारतीय दवा कंपनियों को छूट मिल गई। फिर भारत में दवा का उत्पादन तेजी से बढ़ा। इससे भारत के दवा बाजार पर भारतीय कंपनियां प्रभावी हो गईं। साथ-साथ दवा उत्पादन करने के लिए जिस कच्चे माल यानी एपीआइ की जरूरत थी, उसका भी 99 प्रतिशत हिस्सा देश में बनाया जाने लगा। आज भी भारत के दवा बाजार में भारतीय...
72 प्रतिशत रह गया। 2014 से 2019 के बीच मोदी सरकार ने जो भी कदम उठाए हैं, वे अपर्याप्त सिद्ध हुए। इस वर्ष के बजट के संदर्भ में एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री के राजीव नाथ ने कहा है कि वे मेडिकल उपकरणों पर आयात कर न बढ़ाए जाने से हतोत्साहित हैं।यदि हमें एपीआइ और मेडिकल उपकरण समेत तमाम आयात पर नकेल कसनी है तो आयात कर तेजी से बढ़ाने होंगे। निश्चित रूप से इससे देश में इन माल के दाम कुछ समय के लिए बढ़ेंगे, लेकिन अपनी स्वास्थ्य संप्रभुता के लिए यह भार हमें वहन करना चाहिए। दूसरा कदम तकनीक में...
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