भारत में आखिरकार तीन तलाक के खिलाफ कानून बन गया। जो मर्द पत्नी को तीन तलाक देगा, उसे तीन साल जेल की सजा होगी। इस मामले में भारत इतने साल तक पिछड़ा रहा। पूर्वी पाकिस्तान में मेरे जन्म से पहले ही तीन तलाक को खत्म कर दिया गया था। इस्लामी प्रजातंत्र होने के बावजूद पाकिस्तान तीन तलाक समेत नारी-विरोधी इस्लामी कानूनों को प्रतिबंधित कर चुका है। जबकि एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश होने के बावजूद भारत ने अब तक तीन तलाक पर ढुलमुल रुख अपना रखा...
भारतीय मुसलमानों में से ज्यादातर मानते हैं कि वे पाकिस्तान तथा बांग्लादेश के मुसलमानों से अधिक शिक्षित और सेक्यूलर हैं। अगर ऐसा ही है, तो तीन तलाक जैसे एक प्रतिगामी और नारी-विरोधी कानून को खत्म करने के बारे में उन्होंने क्यों नहीं सोचा? भारत में समानता के पक्षधर लोगों ने समान नागरिक कानून के पक्ष में बार-बार आवाजें उठाईं, लेकिन भारतीय मुसलमान अपने पर्सनल लॉ के मामले में झुकने को तैयार नहीं हुए। जबकि इस्लाम की जन्मभूमि सऊदी अरब में तीन तलाक नहीं...
मैंने जब तलाक दिया था, तब प्रक्रिया बेहद सरल थी। नोटरी के पास जाकर मैंने कहा था कि मैं अमुक को तलाक देना चाहती हूं। उन्होंने मुझे एक कागज पर दस्तखत करने के लिए कहा। दस्तखत कर, कुछ पैसे देकर मैं वहां से निकल गई थी। वह कुछ ही मिनटों का काम था। ऐसा ही होना चाहिए। सालों तक झगड़े-विवादों को ढोते रहने का कोई औचित्य नहीं है। मैं पहले भी कह चुकी हूं, अब भी कहती हूं कि तीन तलाक खत्म होने से महिलाओं को वास्तविक तौर पर कोई लाभ नहीं मिलने वाला। आर्थिक स्वतंत्रता के अलावा औरतों के लिए सिर ऊंचा करके चलने का...
सातवीं सदी के कानून को जो लोग 21वीं सदी में भी मानने की वकालत करते हैं, वे निरे मूर्ख ही हैं। ऐसे लोगों के साथ ही हमारा उठना-बैठना है। ऐसे लोगों की भावनाओं को आहत न करने के उद्देश्य से ही तुष्टीकरण की राजनीति, नारी-विरोधी धर्म और धार्मिक कानूनों की चर्चा चल रही है। अनेक लोगों ने जैसे यह मान लिया है कि तीन तलाक के खत्म हो जाने भर से मुस्लिम महिलाओं को समानाधिकार मिल जाएगा। वे शायद यह नहीं जानते कि जो पुरुष अपनी पत्नी को तलाक देना चाहता है, उसके पास तीन बार तलाक कहने के अलावा भी दूसरे विकल्प हैं। कुछ देशों में तलाक देने के लिए अदालत तक जाना पड़ता है। जो पुरुष अपनी पत्नी से प्यार नहीं करता और उसे तलाक देना चाहता है, वह आज नहीं, तो कल उसे तलाक देगा ही। तीन बार मुंह से बोलकर नहीं दे सकता, तो लिखकर देगा। मौखिक तलाक गैरकानूनी है, लिखित तलाक तो गैरकानूनी नहीं...
मैं कभी भी तलाक के विरुद्ध नहीं रही। सभ्यता और स्वतंत्रता का अर्थ ही यह है कि पति और पत्नी को तलाक देने का भी अधिकार हो। तलाक देने की प्रक्रिया को खामख्वाह जटिल बनाकर एक दूसरे से अलग होने की इच्छा रखने वाली दंपति की परेशानी बढ़ाने का कोई औचित्य ही नहीं है।
मानव समाज मे ऐसे धर्म की आवश्यकता है।
I Too Agree Boss
मानव समाज में ऐसे धर्म की आवश्यक्ता है जहां बीवी छोड़कर भागने वाला देश के उच्च पद पर आसीन हो जाए..ठीक है
कौन कहता है इन नारंगियो को मुस्लिम महिलाओं की फ़िक्र है इन को सिर्फ अपनी बेटियों की चिन्ता हो रही है क्यों कि इन नारंगियो अपनी बेटियों की और भक्तों को अपनी बहनों की चिन्ता हो रही है इसी लिए 3तलाक बिल जी जान लगा पास करा रहे हैं जब इतना डर है सालो मुस्लिमों को अपनी बहन देते क्यों
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