बता दें कि ये कहानी सरकारी महकमे की कार्यशैली और लालफीताशाही पर करारा व्यंग्य है. साल 1960 में लिखी गई इस कहानी को हटाने की वजहों पर ‘काउंसिल ऑफ इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्ज़ामिनेशंस’ ने कोई टिप्पणी नहीं की है. सिर्फ एक आधिकारिक आदेश में कहा गया कि साल 2020 और 2021 की 10वीं में निर्धारित पाठ्यक्रम से कृष्ण चंदर की कहानी ‘जामुन का पेड़’ की परीक्षा नहीं ली जाएगी.
‘क्या मुश्क़िल है?’ माली बोला. ‘अगर सुपरिटेंडेंट साहब हुक़्म दे तो अभी पंद्रह-बीस माली, चपरासी और क्लर्क ज़ोर लगाकर दरख़्त के नीचे से दबे आदमी को निकाल सकते हैं.’एकदम बहुत से लोग दरख़्त को काटने पर तैयार हो गए.सुपरिटेंडेंट अंडर-सेक्रेटरी के पास गया. अंडर-सेक्रेटरी डिप्टी सेक्रेटरी के पास गया. डिप्टी सेक्रेटरी जॉइन्ट सेक्रेटरी के पास गया. जॉइन्ट सेक्रेटरी चीफ सेक्रेटरी के पास गया.
दूसरे दिन महक़मा-ए-ज़िराअत से जवाब आया कि दरख्त हटवाने की ज़िम्मेदारी महकमा-ए-तिज़ारत पर आईद होती है. यह जवाब पढ़कर महक़मा-ए-तिज़ारत को ग़ुस्सा आ गया. उन्होंने फ़ौरन लिखा कि पेड़ों को हटवाने या न हटवाने की ज़िम्मेदारी महक़मा-ए-ज़िराअत पर आईद होती है. महक़मा-ए-तिज़ारत का इस मामले से कोई ताल्लुक़ नहीं है.
तीसरे दिन हॉर्टीकल्चरल डिपार्टमेंट से जवाब आ गया. बड़ा कड़ा जवाब था और तंज़आमेज़ . हॉर्टीकल्चरल डिपार्टमेंट का सेक्रेटरी अदबी मिजाज़ का आदमी मालूम होता था. अब फाइल को मेडिकल डिपार्टमेंट में भेज दिया गया. मेडिकल डिपार्टमेंट ने फ़ौरन इस पर एक्शन लिया और जिस दिन फाइल मिली उसने उसी दिन इस महक़मे का सबसे क़ाबिल प्लास्टिक सर्जन तहकीकात के लिए भेज दिया.
बस फिर क्या था. लोग जोक-दर-जोक शायर को देखने के लिए आने लगे. इसकी ख़बर शहर में फैल गयी. और शाम तक मुहल्ले-मुहल्ले से शायर जमा होना शुरू हो गए. सेक्रेटेरियट का लॉन भांत-भांत के शायरों से भर गया. सेक्रेटेरियट के कई क्लर्क और अंडर-सेक्रेटरी तक, जिन्हें अदब और शायर से लगाव था, रुक गए. फाइल कल्चरल डिपार्टमेंट के मुख़्तलिफ़ शुआबों से गुज़रती हुई अदबी अकादमी के सेक्रेटरी के पास पहुंची. बेचारा सेक्रेटरी इसी वक़्त अपनी गाड़ी में सवार हो कर सेक्रेटेरियट पहुंचा और दबे हुए आदमी से इंटरव्यू लेने लगा.‘अवस!’ सेक्रेटरी ज़ोर से चीखा. ‘क्या तुम वही हो जिसका मजमुआ-ए-कलाम अवस के फूल हाल ही में शाया हुआ है?’‘नहीं!’
‘यह हम नहीं कर सकते.’ सेक्रेटरी ने कहा. ‘जो हम कर सकते थे वह हमने कर दिया है. बल्कि हम तो यहां तक कर सकते हैं कि अगर तुम मर जाओ तो तुम्हारी बीवी को वज़ीफा दिला सकते हैं. अगर तुम दरख़्वास्त दो तो हम यह भी कर सकते हैं.’‘मुसीबत यह है,’ सरकारी अकादमी का सेक्रेटरी हाथ मलते हुए बोला, ‘हमारा महक़मा सिर्फ़ कल्चर से मुताल्लुक़ है. इसके लिए हमने ‘फॉरेस्ट डिपार्टमेंट’ को लिख दिया है. ‘अर्जेंट’ लिखा है.’
भारत की सभी स्कूल कॉलेज और विश्वविद्यालय की कक्षाओं के लिए सिलेबस निर्धारित करने का काम योग्य कमेटी को सौंप दिया जाए जो लगातार यह काम करती रहे।
ऐसे बहुत है जिनकी कहानी हट गई है हमारे सारे स्वतंत्रता सेनानी की भी कहानी तो नही है सिलेबस में वो भी तो बताओ बेन्सटॉक्स
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