जस्टिस सीकरी ने कॉमनवेल्थ ट्रिब्यूनल में नियुक्ति के सरकार के प्रस्ताव को ठुकराया

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Justice Sikri withdraws consent to govt offer to nominate him to Commonwealth Tribunal | मोदी सरकार ने दिसंबर में जस्टिस सीकरी को लंदन स्थित कॉमनवेल्थ सेक्रेटरिएट आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल में भेजे जाने का प्रस्ताव रखा था सीकरी ने पहले प्रस्ताव पर सहमति जताई थी, रविवार को उन्होंने इससे नाम वापस ले लिया जस्टिस सीकरी, आलोक वर्मा को सीबीआई चीफ पद से हटाने वाली 3 सदस्यीय समिति में शामिल थे, मोदी इस समिति के अध्यक्ष थे

 

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खबरदार: क्या BJP 2014 का चुनावी एजेंडा 2019 में भी दोहराएगी? Will the election agenda of 2014 be repeated in 2019? - khabardar AajTakक्या भ्रष्टाचार का मुद्दा मिशन 2019 का भी चुनावी एजेंडा बनने वाला है? ख़बरदार में आज हम विश्लेषण की शुरुआत इसी सवाल के साथ करेंगे, क्योंकि पिछले 24 घंटे की पॉलिटिक्स से तो यही समझ में आ रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2014 के चुनावी एजेंडे को 2019 में भी रिपीट करना चाहते हैं. भले ही राफेल को लेकर राहुल गांधी लगातार उन्हें घेरने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नरेंद्र मोदी सिर्फ पलटवार ही नहीं बल्कि इसे चुनाव तक भी ले जाना चाहते हैं. क्रिश्चियन मिशेल की बात हो या फिर रॉबर्ट वाड्रा के करीबियों के खिलाफ जांच हों, टीम मोदी हर मुमकिन रास्तों से कांग्रेस को फिर उसी मुद्दे पर घेरने में जुटी है जो नरेंद्र मोदी को 2014 की जीत दिलवाने में एक बड़ा फैक्टर रहा था. भ्रष्टाचार के इस चुनावी एजेंडे में नया मामला यूपी का जुड़ा गया है, जहां अखिलेश सरकार के दौरान खनन मामले को सीबीआई ने खोला, जिसकी टाइमिंग के बारे में विरोधी ये कह रहे हैं कि गठबंधन के पीछे सीबीआई लगा दी गई है. नहीं तो क्या सीबीआई की कार्यवाही पर रोक लगा देनी चाहिए क्या ? सपा बसपा का गठवन्धन जनता के विकाश के लिए नहीं बल्कि लूट भृस्टा चार करने के लिए ही बन रहा है बरना क्या जरूरत थी गठजोड़ करने की ☺️☺️ बीजेपी वालों कान खोल कर सुन लो आपको 5 महीनों में सबक मिल जाएगा
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उत्तर प्रदेश: दोबारा ऐतिहासिक जनादेश हासिल करने साथ आई सपा-बसपाउत्तर प्रदेश में सपा-बसपा, कांग्रेस से गठबंधन नहीं चाहते, या कांग्रेस अकेले लड़ना चाहती है, इस पर बहस जारी है। लखनऊ में सपा-बसपा की साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस, तस्वीरों में एक साथ मौजूद आंबेडकर और लोहिया की तस्वीर के बाद दिल्ली दरबार का पूरा विमर्श बदल गया। उत्तर प्रदेश वह प्रयोगशाला है, जहां कांशीराम और मुलायम की लहर में भी गोरखपुर की सीट भाजपा के पास थी। इसके उलट जब बसपा को शून्य पर टिका और सपा को पारिवारिक सदस्यों के बीच सिमटा दिया गया था तब गोरखपुर अलग ही राजनीतिक मोड़ लेता है। 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश ने जो ऐतिहासिक जनादेश दिया था आज उससे उबरने के लिए सपा और बसपा साथ हैं। इस सूबे की राजनीति, केंद्र की भी राजनीति है। लोहिया-आंबेडकर की तस्वीरों को साथ रख इस समीकरण का उद्देश्य है अपने-अपने वोट बैंक को साध ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल करना। केंद्र की राजनीति में सपा-बसपा के अंक मजबूत हों, इसलिए जरूरी है कि कांग्रेस का गणित बिगड़ जाए। संसद में आर्थिक आधार पर दस फीसद आरक्षण पर साथ-साथ चलने के बाद ये दोनों दल अपने-अपने वोट बैंक के पास उसी ‘पहचान’ के साथ लौट आए हैं जो इनकी बुनियाद हैं। बुनियादी विरोधाभासों के साथ वोट बैंक की ऊंची इमारत पर बैठे दोनों दलों की साझीदारी से निकले पाठ पर इस बार का बेबाक बोल।
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